
कई थाने के थानेदारों हुआ फेरबदल…..तारीख दस और दस हुए इधर से उधर…… रक्षित केंद्र में निरीक्षक फिर भी एसीसीयू का प्रभार फिर उसी अधिकारी को…..आदेश विभागीय लेकिन चर्चाऐं हुई सार्वजनिक……
बिलासपुर–जिले के पुलिस विभाग में अलग अलग थाने सहित कई थानेदारों के लेकर हुए फेरबदल से विभागीय कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठना भी लाजमी था।साल के अंतिम माह दिसंबर के महीने में इस तरह से थानेदारों का तबादला किया जाना।यह आदेश आने के बाद से थाने स्तर पर तैनात पुलिस महकमा पूरी तरह से सहम गया।क्योंकि इस महीने में पूरे साल भर के थानों में पड़े लंबित मामलों को निकाल करने का काफी दबाव बना रहता है।इस तरह से अचानक थानेदारों का तबादला होना,यह चर्चा का विषय बन गया।सूत्रों और विभागीय चर्चाओं के मुताबिक कई निरीक्षक महीनों से रक्षित केंद्र में बिना किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के पड़े हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद एसीसीयू जैसे महत्वपूर्ण विभाग का प्रभार एक उप-निरीक्षक (SI) को सौंप दिया गया है। ताज़ा आदेश में हेमंत आदित्य को एसीसीयू प्रभारी बनाया गया है, जबकि आरोप है कि वे पहले भी लंबे समय तक क्राइम ब्रांच और एसीसीयू में अपनी तैनाती दे चुके हैं।

इसी कारण विभाग के अंदर और बाहर दोनों तरफ बस एक ही चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या एसीसीयू जैसा संवेदनशील और गंभीर मामलो के विभाग की बार-बार एक ही अधिकारी को वहीं पोस्टिंग मिलती है?”
यह सवाल केवल पुलिस के भीतर ही नहीं, बल्कि शहर के आम जनमानस के बीच में भी उठ रहा है। यदि विभाग में योग्य और उच्च पदस्थ अधिकारी उपलब्ध हैं, तो लगातार एक ही अधिकारी को ही संवेदनशील पद क्यों दिया जाता है,यह चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है।

रिश्वत मामले में रक्षित केंद्र भेजे गए निरीक्षक को कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी?
एक और विवादित निर्णय में निरीक्षक अनिल अग्रवाल, जिन्हें पहले रिश्वत लेने के आरोप में रक्षित केंद्र भेजा गया था, अब उन्हें कानून व्यवस्था शाखा जैसे महत्वपूर्ण दायित्व का प्रभारी बनाया गया है। यह फैसला भी पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता को लेकर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस अधिकारी पर आचरण को लेकर प्रश्न उठ चुके हों, उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना क्या उचित है?
टकराव वाले अधिकारी और थाना प्रभारी का पद….
सबसे अधिक विरोध दो थानेदारों को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है।जिसमें एक की पोस्टिंग और एक जो लंबे समय से थाने में जमे हुए इसको लेकर देखा जा रहा है। चर्चाओं के अनुसार इनके थाने में तैनात पुलिस कर्मचारियों से लेकर आम जनता इनके व्यवहार और कार्यप्रणाली को लेकर कई शिकायतें उच्च अधिकारियों तक दर्ज करा चुके है।आरोप ये भी हैं कि पुलिस विभाग से दिए गए सरकारी नंबर पर फोन उठता नहीं है।इनके शासकीय नंबर पर आप फोन लगाते रहिए यह अपने मनमर्जी चलाते हुए उन नंबरों को दरकिनार कर देते हैं और अपने राजनीतिक आकाओं की गोदी में बैठकर विशेषकर सत्तारूढ़ नेताओं तक पहुंच का हवाला देते हैं। ऐसी पृष्ठभूमि वाले अधिकारियों को शहर के महत्वपूर्ण थाना क्षेत्र की कमान देना भी लोगों के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है।वही इस आदेश में कई ऐसे थानेदार है जो थाने में अन्य थानेदारों की तरह लंबी पारी भी नहीं खेल पाए उनको वहां से हटा दिया गया।जो थाने पर ठीक से संभले भी नहीं की उनको दूसरा थाना दे दिया गया।
पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता पर बड़ा सवाल…..
इन सभी नियुक्तियों को मिलाकर देखा जाए तो विभाग के अंदर पदस्थापनाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जहां निरीक्षक रक्षित केंद्र में पड़े हुए हैं, वहीं संवेदनशील पदों पर उन्हीं लोगों को दोबारा-तीसरी बार तैनाती मिल रही है। इससे कार्यप्रणाली में “पसंद-नापसंद” और “ऊँची पहुंच” का प्रभाव झलकने की चर्चाएँ तेज हो गई हैं।
बिलासपुर जैसे संवेदनशील जिले में यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है कि……
क्या पुलिस प्रशासन योग्यता के आधार पर काम कर रहा है, या फिर कुछ अधिकारी विशेष संरक्षण और पहुंच के कारण बार-बार मलाईदार पदों पर भेजे जा रहे हैं?
यह मुद्दा अब प्रशासनिक पारदर्शिता, पुलिस की विश्वसनीयता और कानून व्यवस्था – तीनों पर गंभीर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।क्या ऐसे में अपराध रुक पाएगा या फिर थानों में पड़े लंबित मामलों का निकाल हो पाएगा।ऐसे कई सवाल उभर कर सामने आ रहे है।जिनका जवाब आने वाला समय ही सुनिश्चित कर सकेगा।




