
कायमी में 91 दिन की देरी, सिस्टम पर बड़ा सवाल सीपत सड़क हादसा…..दो मौतें एफआईआर तीन महीने बाद कानूनी प्रक्रिया या लापरवाही…..?
बिलासपुर–जिले के सीपत थाना क्षेत्र में 16 सितंबर 2025 को हुए दर्दनाक सड़क हादसे में दो युवकों की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज होने में करीब 91 दिन की देरी ने पुलिस कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना की रात ही मर्ग क्रमांक 89/2025 दर्ज कर ली गई थी, शव पंचनामा, पोस्टमार्टम, गवाहों के बयान और स्थल निरीक्षण जैसी कार्रवाई भी उसी समय हो गई थी। इसके बावजूद धारा 106(1) BNS के तहत नियमित अपराध पंजीबद्ध करने में 16 दिसंबर 2025 तक का इंतजार क्यों किया गया—यह सवाल अब जवाब मांग रहा है।
जांच के मुताबिक, कोरबा से लौटते वक्त ग्राम सेलर के इंडस्ट्रियल एरिया में तेज रफ्तार और लापरवाही से चल रही मोटरसाइकिल आम के पेड़ से टकरा गई। चालक शैलेन्द्र कुमार साहू की मौके पर मौत हो गई, जबकि पीछे बैठे विक्रम सूर्यवंशी गंभीर रूप से घायल हुए और इलाज के दौरान 22 अक्टूबर 2025 को उनका भी निधन हो गया। यानी दूसरी मौत के बाद भी एफआईआर दर्ज होने में लगभग 55 दिन और लग गए।
कानूनी जानकारों के अनुसार, जब मर्ग जांच में अपराध के तत्व स्पष्ट हो जाएं, तो बिना अनावश्यक विलंब के अपराध पंजीबद्ध करना अनिवार्य है। यहां सवाल यह भी है कि स्पष्ट साक्ष्य, पीएम रिपोर्ट और गवाहों के बयान उपलब्ध होने के बावजूद देरी क्यों हुई? क्या यह प्रशासनिक शिथिलता है या प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से खींचा गया?
सबसे अहम बिंदु यह कि एफआईआर में मृतक को ही आरोपी दर्शाया गया है। जबकि दूसरी मौत, दुर्घटना की परिस्थितियां और समय-सीमा को देखते हुए समग्र जिम्मेदारी तय करने की पारदर्शी प्रक्रिया अपेक्षित थी। पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की राह इतनी लंबी क्यों बनाई गई।यह सवाल अब सार्वजनिक बहस का विषय बन चुका है।
यह मामला केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एफआईआर की समयबद्धता, जांच की निष्पक्षता और जवाबदेही पर सीधा प्रहार है। जब कानून कहता है कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के बराबर है।तो फिर 91 दिन की देरी के लिए जिम्मेदार कौन?



