
दर्दनाक सड़क हादसे के बाद जगा निगम…..अवैध होर्डिंग और फ्लेक्स बैनर पोस्टर हटाने में जुटा निगम का अमला…..
बिलासपुर– युवक की दर्दनाक मौत के बाद नगर निगम की अचानक सक्रियता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सुबह से ही निगम की टीमें फ्लेक्स, बैनर और पोस्टर हटाने में जुट गईं, जैसे किसी सोई हुई व्यवस्था को झकझोर कर जगा दिया गया हो। लेकिन सवाल यह है कि नगर निगम को इससे पहले ये अवैध फ्लेक्स और पोस्टर क्यों नहीं दिखे? क्या किसी अनहोनी के इंतज़ार में थे अधिकारी?
शहर भर में अवैध फ्लेक्स-बैनरों की भरमार कोई नई बात नहीं है। चौराहों, बिजली के खंभों, सरकारी इमारतों और यहां तक कि ट्रैफिक सिग्नल्स तक पर नेताओं की तस्वीरें चमकती रहती हैं। कोई जन्मदिन मना रहा है, तो कोई स्वागत करा रहा है। हर आयोजन के बहाने शहर को पोस्टर-बैनरों से पाट दिया जाता है। लेकिन नगर निगम की आंखें जैसे बंद थीं। अब जब एक मासूम युवक की जान चली गई, मिली जानकारी के अनुसार, सड़क पर खंबे में लगे बैनर-फ्लैक्स से बाइक का हैंडल टकरा गया। इससे वाहन चालक का संतुलन बिगड़ गया और वह डिवाइडर पर सिर के बल गिर गया। इससे उसकी घटना स्थल पर ही मौत हो गई। वहीं, दूसरा युवक घायल है। सूचना पर पुलिस की टीम मौके पर पहुंची और घायल युवक को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इलाज के दौरान युवक की मौत हो गई। बता दें कि, घटना के हुई उसके बाद तब जाकर नगर निगम हरकत में आया है। सवाल यह है कि यदि निगम पहले ही अपनी जिम्मेदारी निभाता, तो क्या इस मौत को टाला नहीं जा सकता था?निगम की यह ‘घटना आधारित कार्यशैली’ गंभीर लापरवाही की ओर इशारा करती है। ऐसी व्यवस्था जो तब तक नहीं जागती जब तक कोई हादसा न हो जाए, वह जनता की सुरक्षा की गारंटी कैसे दे सकती है? यदि एक सामान्य नागरिक फ्लेक्स लगाता है, तो तुरंत चालान या नोटिस भेजा जाता है। लेकिन बड़े नेताओं या रसूखदारों के फ्लेक्स को देखकर निगम के कर्मचारी आंख मूंद लेते हैं। यह दोहरा मापदंड क्या किसी ‘चाचा-भतीजे’ की साठगांठ की ओर इशारा नहीं करता?अब अचानक फ्लेक्स हटाए जा रहे हैं, मानो शहर की सफाई की होड़ मच गई हो। यह कार्रवाई किसी संवेदनशील प्रशासन का संकेत नहीं, बल्कि एक हादसे के डर से उपजी दिखावटी कोशिश लगती है। नगर निगम के इस रवैये ने यह साबित कर दिया है कि यहां नियम-कानून केवल कागज़ों तक ही सीमित हैं और ज़मीनी स्तर पर अमल तभी होता है जब कोई घटना ‘सुर्खियों’ में आ जाए। क्या नगर निगम केवल मृतकों को श्रद्धांजलि देने और बाद में लीपापोती करने के लिए है? या फिर उसकी असली जिम्मेदारी लोगों की जान-माल की सुरक्षा है?