मुख्यमंत्री के ढाई साल के फ़ार्मूले की धज्जियाँ उड़ रहीं है बिलासपुर तहसील में

बिलासपुर।छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पुलिस और राजस्व विभाग की लगातार मिल रही शिकायतों के कारण ढाई साल से ज़ायदा समय से एक ही जगह पर जमें हुए सरकारी कर्मचारियों को हटाने का आदेश दिया था। इस आदेश के पालन में कलेक्टर बिलासपुर ने शहरी हलकों में लम्बे समय से जमे हुए पटवारियों को देहात हलको में भेजा था। लेकिन ये शहरी पटवारी देहात में तीन माह भी नहीं गुज़ार पाए। और इनका साथ दे रहें है बिलासपुर तहसीलदार रमेश मोर। देहात में गए पटवारियों को वापसी लाने का क्रम चालू कर दिया गया इनके द्वारा।

अपने चहेते पटवारी आलोक तिवारी को सबसे पहले ये नियम से हटकर बैमा नगोई का अतिरिक्त प्रभार दिलाकर ज़मीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर धीरे से आलोक तिवारी अतिरिक्त से मूल प्रभार दिला देंगे। जबकि मुख्यमंत्री के आदेश से आलोक तिवारी का ग्राम बसहा कलेक्टर ने खुद किया था। लेकिन तहसीलदार रमेश मोर आलोक तिवारी को बैमानगोई दिलाने के लिए एड़ी चोटी कर दिए और नियम को तोड़ने पर आमादा हो गए। जब भी कोई पटवारी हलका ख़ाली होता है तो आसपास के ही किसी पटवारी को अतिरिक्त प्रभार दिया जाता है लेकिन इस बार तहसीलदार मोर ने बेलतरा सर्किल के बसहा ग्राम के पटवारी आलोक तिवारी को बैमानगोई सर्किल के ग्राम बैमा नगोई का अतिरिक्त प्रभार दे दिया। जबकि आस पास के पटवारी और वह भी उसी सर्किल के पटवारी को देने का नियम है। लेकिन
बिलासपुर तहसील में जो हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी हाल ही में रायगढ़ में नायब तहसीलदार की पिटाई का मामला सुर्ख़ियों में है। राजस्व विभाग आकंठ तक भ्रष्टचार में डूबा हुआ है। ख़ासकर बिलासपुर तहसील। रायगढ़ की घटना की पुनरावृत्ति यहाँ भी न हो जाए इससे पहले शासन प्रशाँसन को अपनी व्यवस्था सुधारने पर ध्यान देना ज़रूरी है। जनता में शहरी पटवारियों को देहात भेजने के बाद फिर से वापस शहर लाने की साज़िश को लेकर आक्रोश है। तहसीलदार रमेश मोर के इस चाहत को लेकर चारों तरफ़ आलोचना हो रही है।

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