शिष्य के व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण में रहती गुरु की अहम भूमिका –कोशलेंद्र
बिलासपुर–राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा पूरे वर्ष भर में प्रमुख रूप से छै उत्सवों को मनाती है।जिनमें से एक गुरु पूर्णिमा उत्सव जो एक महत्वपूर्ण उत्सव है।इस उत्सव को भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।इसी कड़ी में बिलासपुर नगर में रविवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर तिलक नगर में गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाया गया।जिसमे बड़ी संख्या में आरएसएस के कार्यकर्ता और पदाधिकारी शामिल हुए।उक्त कार्यक्रम में क्रीडा भारतीय प्रमुख और आरएसएस के प्रचारक कौशलेंद्र मुख्य वक्ता के रूप में मंचस्त हुए।
मुख्य वक्ता के रुप में आए आरएसएस प्रचारक ने अपने उद्बोधन में कहा की संघ की स्थापना से लेकर आज तक संघ की 100 वर्ष की यात्रा लगभग पूर्ण हो रही है।परंतु संघ ने अपने स्थापना से लेकर आज तक ना तो कार्य करने की पद्धति बदली, ना तो लक्ष्य बदला, और नहीं सिद्धांतों और अनुशासन के साथ किसी भी प्रकार का कोई समझौता किया।और भी बहुत सारे संगठनों ने देश धर्म समाज के लिए लंबे समय तक काम किया पर कोई भी ऐसा संगठन नहीं रहा जिन्होंने प्रतिकूल समय पर इतनी दृढ़ता से अपने मौलिक सिद्धांतों के साथ अडिग होकर चलना स्वीकार किया हो।सब ने समय-समय पर अपने कार्य पद्धति और सिद्धांतों को बदल दिया,पर संघ की 100 वर्षों की यात्रा हो रही है, और वह भी अपने मौलिक सिद्धांतों और कार्य पद्धति के साथ।जिसके बाद उन्होंने गुरु पूर्णिमा के इस उत्सव पर अपनी बात को रखे और बताया की भारत के गुरु शिष्य परंपरा की कुछ विशेष बातों पर प्रकाश डाला कि जिस तरह धरती का गुरुत्व सबको अपने साथ बांधकर रखना है इस तरह गुरु भी समाज को अपने साथ बांधकर रखता है।
गुरु अपने शिष्य में व्यक्तित्व का निर्माण करता है, शिष्य के चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है, और गुरु समय-समय पर अपने शिष्य को मार्गदर्शन भी देता रहता है। भारत के जो सैकड़ो महापुरुष हुए उन्हें एक सामान्य मानव से राष्ट्र को दिशा देने वाला एक विशाल व्यक्तित्व बनाने मैं उनके गुरुओं का ही योगदान था।मुख्य वक्ता ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और उनके गुरु वशिष्ठ का उदाहरण दिया श्री कृष्ण जी और उनके गुरु महर्षि सांदीपनि का उदाहरण दिया, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जी का उदाहरण दिया चंद्रगुप्त और चाणक्य का उदाहरण दिया।अंत में मुख्य वक्ता ने कहा कि भारत में गुरु शिष्य परंपरा की यह अनूठी विधा जो है यही वह साधन है जो भारत को पुनः विश्व गुरु के स्थान पर पदस्थापित कर सकता है, और संघ का भी जो अंतिम लक्ष्य है की मां भारती को परम वैभव के शिखर तक पहुंचाना, वह भी गुरु शिष्य परंपरा की अनूठी पद्धति के साथ ही पूर्ण हो पाएगा।