
अवैध वसूली मामले में साहब की कार्रवाई में थानेदार को मिल ही जाता है अभयदान…?अवैध वसूली में ASI और कॉन्स्टेबल निलंबित…..एसएसपी की सख्त कार्रवाई फिर भी उठा सवाल – थाना प्रभारी क्यों बचे?…….
बिलासपुर–पुलिस विभाग की छवि पर फिर एक बार दाग लग गया है। अवैध वसूली और डराने-धमकाने की शिकायत पर बिलासपुर एसएसपी रजनेश सिंह ने सख्त रुख अपनाते हुए सीपत थाने में पदस्थ एएसआई सहेत्तर कुर्रे और आरक्षक आशीष मिश्रा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। मामला सीपत थाना क्षेत्र का है, जहां व्यापारी और एनटीपीसी कर्मी दोनों से पुलिसकर्मियों द्वारा वसूली और भयादोहन की शिकायत सामने आई थी।
व्यापारी से 24 हजार की उगाही, NTPC कर्मी ने जहर खाकर दी जान देने की कोशिश…..
जानकारी के मुताबिक, वाहन जांच और चालानी कार्रवाई के नाम पर व्यापारी से ऑनलाइन 24 हजार रुपये की वसूली की गई थी। वहीं एनटीपीसी के एचआर विभाग में कार्यरत धीरेंद्र मंजारे से शराब पीकर गाड़ी चलाने का आरोप लगाकर 50 हजार रुपये की मांग की गई। धमकी से घबराकर कर्मी ने घर पहुंचकर जहर पी लिया। फिलहाल उसका इलाज अपोलो अस्पताल में जारी है।
जांच में सामने आया पूरा खेल
एसएसपी ने पूरे मामले की जांच एडिशनल एसपी राजेंद्र जायसवाल को सौंपी थी। जांच में खुलासा हुआ कि व्यापारी से दो किश्तों में 22 हजार और 2 हजार रुपये प्राइवेट कंप्यूटर ऑपरेटर राजेश्वर कश्यप के खाते में ट्रांसफर कराए गए। यही ऑपरेटर थाने में रोजाना मौजूद रहता है और पुलिसकर्मियों के लिए अवैध वसूली का माध्यम बना हुआ है। जांच में एएसआई सहेत्तर कुर्रे और आरक्षक आशीष मिश्रा की भूमिका संदिग्ध पाई गई। जिसके बाद दोनों को निलंबित करने का आदेश जारी किया गया।
बार-बार दोहराई जा रही “थाना प्रभारी बचाओ” नीति
गौरतलब है कि यह कोई पहला मामला नहीं है इसके पहले भी कई मामले सामने आए जहां पर बेजा कार्रवाई के नाम पर मोटी रकम वसूल की गई है और शिकायत होने पर थाना प्रभारी को बचाते हुए निचले स्तर के पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई हो। इससे पहले भी कुछ माह पूर्व बिल्हा थाना में जबरन जुआ के मामले में कार्रवाई को लेकर ग्रामीण ने लिखित शिकायत की थी इसके बाद भी थाना प्रभारी पर लगे आरोपों से ध्यान हटाने के लिए प्रधान आरक्षक के ऊपर कार्रवाई की गाज गिराते हुए लाइन अटैच कर दिया गया था। अब सीपत थाना में भी वही कहानी दोहराई जा रही है। इस बार भी थाना प्रभारी को बचाते हुए थाने में पदस्त दो पुलिस कर्मियों पर गाज गिरी है।जबकि शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में स्पष्ट तौर पर थाना प्रभारी के नाम का उल्लेख दो बार किए जाने के बाद भी जांच रिपोर्ट में इनका नाम नहीं आना यह गौर करना वाला विषय और जांच रिपोर्ट को लेकर सवालिया निशान लगा रहा है।
थाने का आरामगाह कमरा…..और विवाद का घर
इस पूरे मामले में एक बात समाने आई कि थाना परिसर में पुलिस कर्मियों के आराम करने के लिए एक कमरा बना हुआ जहां पर कुछ चुनिंदा पुलिस कर्मी वहां आराम फरमाते है।लेकिन वहीं इस क्षेत्र के अधिकांश युवकों की पैठ उस कमरे तक है।ऐसा भी नहीं की इस कमरे में होने वाली करतूत थानेदार से छिपी है।इसकी जानकारी भी थानेदार को है। पूरे मामले में शुरुवात भी इसी कमरे में आने को लेकर शिकायतकर्ता से हुई।शिकायतकर्ता उस कमरे से नीचे उतर कर जा रहा था जहां थानेदार गोपाल सतपति ने युवक को नीचे आते देख भड़क गए और पूरा मामला उलझ गया।
सिस्टम में जड़ें जमा चुका “अवैध वसूली नेटवर्क……
सूत्र यह बताते है कि शहर ही नहीं, जिले के अधिकांश थानों में “सिस्टम” बन चुका है…..जहां अफसरों की कथित बेगारी और खर्चे इसी अवैध उगाही से पूरे किए जाते हैं। हर थाने में एक ऐसा व्यक्ति या पुलिसकर्मी होता है जो अधिकारियों के लिए वसूली का काम संभालता है।सूत्र तो यह भी दावा करते है कि शहर के एक पुलिस अधिकारी अपने पद का पूरा फायदा उठाते हुए अपने घर से लेकर निजी कार्यक्रम में शामिल होने तक के लिए समान के लिए बेगारी देखने वाले आरक्षक से सीधे संपर्क कर अपनी जरूरतें बता दी जाती है।पुलिस महकमे में सभी को इसकी जानकारी है।इसके बाद भी उच्च अधिकारी इस मामले में अपनी रुचि नहीं दिखाते और खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।लेकिन कोई खुलकर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।
बहरहाल अब सवाल यह उठता है कि क्या यह कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए है या वाकई पुलिस विभाग अपनी व्यवस्था सुधारने की दिशा में गंभीर है?