स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अनुदान मांगो पर विधायक अटल श्रीवास्तव ने विधानसभा में कांग्रेस का पक्ष रखा

छत्तीसगढ़–विधानसभा सत्र में कोटा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक ने सभापति के समक्ष कांग्रेस का पक्ष रखते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के अनुदान मांगो के विरोध में यहा खड़ा हुआ हूं। सभापति महोदय, जब देश आजाद हुआ था तो नारा चलता था कि रोटी, कपड़ा और मकान। पूर्ववर्ती सरकारों ने रोटी का तो इंतजाम कर दिया। सबको चावल मिलने लगा। सबको अनाज मिलने लगा। गरीब को खाना नसीब होने लगा। मकानों की भी जहां बात थी तो इंदिरा आवास से लेकर अभी तक लोगों के पक्के मकानों की भी बातें हो रही हैं। कपड़ों की आपूर्ति अपने आप ही हो जा रही है और जो चैथा महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आम आदमी की जिंदगी को कही न कहीं प्रभावित करता है, वह स्वास्थ्य है और मुझे बड़ा दुख है कि स्वास्थ्य के बजट में छत्तीसगढ़ शासन ने बहुत कम बजट रखा है। जोकि उसका बजट बढ़ाया जाना चाहिए था। अभी आदरणीय धरम लाल कौशिक जी डाटा बता रहे थे कि कितने लोगों की कितनी कमी हैं? जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तब कितने जिले थे और आपकी सरकार जब थी तो 26 जिले थे और आज 33 जिलें हैं और 33 जिला अस्पतालों के निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। कहीं कंस्ट्रक्शन चालू है, कहीं कंस्ट्रक्शन कम्पलीट हो चुका है और वहां पर जो मेन पावर्स की जरूरत है। वहां डाॅक्टर्स की नर्सिंग स्टाफ की, बाकी स्टाॅफ की जरूरत है, उसकी भी मांग बढ़ती चली गयी है। हमारे यहां लगभग 32 चिकित्सा महाविद्यालय हैं, जिसमें से 21 चिकित्सा महाविद्यालय मेडिकल काॅलेज के रूप में रन कर रहे हैं। 3 प्राइवेट मेडिकल काॅलेज हैं और 5 डेंटल के प्राइवेट काॅलेज हैं। नर्सिंग के 8 गवर्नमेंट काॅलेज हैं और 117 प्राइवेट नर्सिंग काॅलेज चल रहे हैं, पर मैन पाॅवर की जो कमियां हो रही हैं, उसकी तरफ हमारा ध्यान कहीं नहीं है। नये-नये मेडिकल काॅलेज की घोषणाएं हो रही हैं। नये जिलों की घोषणाएं हुई पर उसमें लगने वाले हमारे जो डाक्टर्स हैं, जो स्टाफ है, उसके लिए हमारा क्या रोड मैप है, उसके बारे में हमारी तैयारियां अधूरी हैं। मैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी से निवेदन करूंगा कि जो मैन पावर्स लगने हैं, आदरणीय धरम लाल कौशिक जी कमियां बता रहे थे। कि कहां पर कितनी कमियां हैं, ये कमियां 5 साल की नहीं हैं। ये कमियां छत्तीसगढ़ बनने के बाद की हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से लगातार मेडिकल के लाइन पर हमको टेक्नीशियन की और स्टाफ की लगातार कमियां देखने को मिल रही हैं। उन्होंने बताया कि चिकित्सा विशेषज्ञ की 1734 पद की स्वीकृति है, उसमें से हम 1235 पदो की भर्ती किये हैं और और अभी भी 2254 पद खाली हैं। आखिर क्या कारण है कि हमारे जो विशेषज्ञ चिकित्सक हैं, वे सरकारी नौकरियों पर नहीं आना चाहते हैं। यह शोचनीय प्रश्न है कि आखिर उनका क्या कारण हैं? ऐसा नहीं है कि चिकित्सक नहीं हैं। बिलासपुर में अपोलो हाॅस्पिटल खुलता है तो दिल्ली से, गुड़गांव से, राजस्थान से लोग यहां पर नौकरी करने आते हैं। पर आपकी सरकारी संस्थाओं में विशेषज्ञ चिकित्सक क्यों नहीं आते है? इसमें आपको सोचना पड़ेगा। आखिर क्या हम पेमेंट कम करते हैं? क्या हम सुविधाएं कम करते हैं? क्या हमारे अस्पतालों में राजनीति ज्यादा हैं? क्या उनको वर्किंग एटमोसफेयर नहीं मिल पा रहा हैं। ये सोचने का समय है कि क्या हम उन विशेषज्ञ चिकित्सकों को अपने अस्पताल तक कैसे लायें ।
यह सोचने का समय है कि हम विशेषज्ञ चिकित्सकों को अपने अस्पतालों तक कैसे लाएं, 2,254 पद खाली हैं। सभापति महोदय, चिकित्सा अधिकारी के 187 पद खाली हैं। नर्सिंग स्टाफ के 13,863 पद स्वीकृत हैं जिसमें नर्सिंग सिस्टर, हाउस कीपर, सीरियर सिस्टर के लगभग 3763 पद खाली हैं। पुरूष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में 5,376 पदो में से 1,572 पद खाली है। स्वास्थ्य विभाग में देखने को मिल रहा है कि हम नई-नई घोषणाएं कर रहे है। मेडिकल काॅलेजेस बना रहे हैं, जिला अस्पताल बन रहा है किंतु हमारा ध्यान मेनपावर की तरफ नहीं है जो हमें विशेषज्ञ चिकित्सक चाहिए, नर्सिंग स्टाॅफ चाहिए, उसकी कमी लगातार बढ़ती चली जा रही है। 2000 से 2003 के बीच एक तीन वर्षीय मेडिकल पाठ्यक्रम आया था। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कहा जाता है कि ग्रेज्युशन करने के पहले आप डिप्लोमा भी कर सकते हैं, 3 वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम होता है। मेरा ऐसा मानना है कि जितनी कमियां दिख रही हैं उसे सुधारने के लिए 3 वर्षीय पाठ्यक्रम लाना चाहिए ताकि वे गांव में जाकर लोगों की सेवा कर सकें। चार, साढ़े चार साल का एमबीबीएम पढ़ने के बाद डाॅक्टर डेढ़ साल का इंटर्नशिप करता है, उसके बाद दो साल पीजी करता है तो गांव जाने की इच्छा खत्म हो जाती है वह शहर में एक नर्सिंग होम खोलता है। अगर गांव में चिकित्सा सुविधा बढ़ाना है तो आपको तीन वर्षीय चिकित्सा पाठ्यक्रम लाना होगा तभी आप गांवों में चिकित्सा सेवा को बढ़ा सकते है। सभापति महोदय, खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना की बात हुई, जिसमें गरीबी रेखा वालों को 5 लाख और अन्य राशन कार्डो को 50 हजार के इलाज की सहायता मिलती है। इसमें अभी बढ़ोतरी की गई, यह अच्छी बात है। वैसे ही मुख्यमंत्री विशेष सहायता योजना, पिछले तीन महीनों से बीमार आदमी अपनी सांस के लिए, अपने जीवन जीने के लिए किसी का इंतजार नहीं करता, उसकों इलाज की जरूरत होती है। किंतु पिछले 3 महीनों से मुख्यमंत्री विशेष सहायता योजना के तहत लोगों को पैसे उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। उसके क्या कारण हैं, यह मैं नहीं जानता। जो आदमी बीमार पड़ता है, जो आईसीयू. में है, जिसको आक्सीजन की जरूरत है, जिसकों इलाज की जरूरत है, जिसको पैसे की जरूरत है, यदि उसे सही समय पर पैसा नहीं मिला तो वे पैसा उसके किसी काम का नहीं होता है।
मेरा आशय यह नहीं था कि मुख्यमंत्री विशेष सहायता योजना का लाभ क्यों नहीं मिल रहा है? राजनीतिक कारण है, सरकार बने हुए तीन महीने हुए हैं। मैं चाहता हूं कि इसका भी विकेन्द्रीकरण हो क्योंकि जब आदमी बीमार पड़ता है तो वह अपने लोकल जनप्रतिनिधि के पास पहले पहुंचता है। पहले विधायक के पास जाता है कि मुझे आपकी मदद की जरूरत है। विधायक मंत्री के पास जाता है कि इसे इलाज की जरूरत है, नहीं तो इसकी जान चली जाएगी। इस चक्कर में वह डेढ-दो महीने घूमता है तो उसकी जान चली जाती है। सभापति जी, आपके माध्यम से मैं माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी से निवेदन करना चाहता हूं कि विधायकों को जो निधि मिलती है, खासकर अपने क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य के काम के लिए उस निधि को बढ़ाया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य योजना का कुछ पैसा विधायकों को मिलना चाहिए ताकि जरूरतमंद लोगों को तुरंत सुविधा मुहैया कर सकें।
माननीय सभापति महोदय, धनवंतरी योजना की बात हुई। धनवंतरी योजना इतनी अच्छी योजना थी, जहां भी शुरू हुई वहां लगभग 65 परसेंट की कमी आई है अब हमको 800 रूपये लगते हैं। जहां धनवंतरी मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं, उनकी संख्या और बढ़ाई जानी चाहिए। संख्या बढ़ाने से आमजन को सुविधा होगी, क्योंकि हर परिवार में दवाईयों का प्रयोग बढ़ा है। किसी परिवार में बुजुर्ग है, कोई बीमार आदमी है तो उसके कुल बजट का 20 से 25 प्रतिशत स्वास्थ्य सुधार में चला जाता है। धनवंतरी मेडिकल स्टोर खुलने से लोगों को लाभ मिलेगा।
सभापति महोदय, मैं स्वास्थ्य मंत्री जी का ध्यान सीजीएमएससी की ओर आकर्षि करना चाहता हूं। सीजीएम.एस.सी पर जो खरीदी होती है, इस पर उनके पैमाने लगातार बदलते जाते हैं। आप देखिएगा कि जितने भी छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कार्पोरेशन ने खरीदी की है, उसमें बहुत ज्यादा फर्क है। जो डी.एम.एफ के माध्यम से जिलों में खरीदी की जाती है, उन जिलों में उसी दवाई का रेट हर जिलों में अलग-अलग कोड किया जाता है। इसमें जिन लोगों की भी संलिप्तता है, आपकों ढूंढना होगा। आज धरमलाल जी कह रहे थे, मैं उसकों स्वीकार करता हूं। उसमें जो लोग दवाईयों के मामले में इन्वाल्व हैं, उनकों कड़ी से कड़ी सजा दीजिए उन पर दवाईयां 3 रूपये में खरीदी जा रही है, दूसरे जिले में 10 रूपये में खरीदी जा रही है, तीसरे जिले में वही दवाई 20 रूपये में खरीदी जा रही है, आखिर ऐसी दवाईयों में क्या है कि जब वह जिला बदलता है तो उसकी कीमतें बदल जाती है, आखिर ऐसी दवाईयों में क्या है कि वह जिला बदलता है तो उसकी कीमतें बदल जाती हैं। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। सभापति महोदय, मैं अपनी बात आगे बढ़ाना चाहता हूं। हम सबकी बात करते हैं, अन्नादाओं के लिए किसानों के लिए एम.एस.पी. हो गया। हमारे जो प्राणरक्षक दाता हैं, जो प्राइवेट नर्सिग होम, प्राईवेट काॅलेज खोलते हैं, माननीय मंत्री जी से निवेदन है कि उनके लिए थोड़ा सा साफ्ट कार्नर रखें, कहीं न कहीं सरकारी ईलाज की कमियों के कारण लोग प्राईवेट हाॅस्पिटल की तरफ बढ़ते हैं। जो आपकी खूबचंद बघेल या आयुष्मान योजना है, उसमें जो रेट्स दिये गये हैं, पिछले 10 सालों से वह रेट नहीं बढ़ाए गये हैं। उसकी कुछ ऐसी योजना बनाई जाए कि प्राईवेट नर्सिंग होम में आदमी अपना ईलाज भी करा ले और नर्सिंग होम वाले का नुकसान भी न हो। क्योंकि अधिकतर यह देखने को मिलता है, कई बार शिकायतें भी आती है कि नर्सिंग होम वाले ज्यादा वसूली कर रहे हैं। एक कार्ड को बार-बार यूज कर रहे हैं कहीं न कहीं चैबंध व्यवस्था बनानी चाहिए।

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