मेडिकल कंपनी के एम.आर. मामले में पुलिस उलझी…… मारपीट कर अपहरण की घटना में पुलिस ने साधी चुप्पी….. पीड़ित की शिकायत को थानेदार कर रहे अनदेखा….मामला कोतवाली का चक्कर काट रहा है पीड़ित सिविल लाइन का
बिलासपुर–प्रदेश की न्यायधानी बिलासपुर शहर के सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के अंतर्गत घटित एक घटना को लेकर एक बार फिर बिलासपुर पुलिस सवालों के घेरे में है , पीड़ित अपने साथियों सहित न्याय के लिए विगत 3 दिनों से भटकने को मजबूर है , तमाम शिकायत और सबूतों के बाद भी पुलिस पीड़ित पक्ष को इंसाफ नहीं दिला पा रही है मारपीट और अपहरण जैसे संगीन मामला सामने आने के बाद भी कोतवाली थाने की पुलिस अपना पल्ला झाड़ते हुए दूसरे थाना का मामला होना बता कर उसे चलता कर दिया।इस घटना के बाद से पीड़ित और उसके साथी तीन दिनों से न्याय की आस में गुरुवार को बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में घंटो थाने में अपनी फरियाद को लेकर खड़े रहे लेकिन इनकी फरियाद में पुलिस ने अब तक कोई ठोस पहल करना भी मुनासिब नहीं समझा,और जांच का हवाला देकर आगे की कार्रवाई करने की बात करते हुए मामले को गंभीरता से ना लेकर उसे चलता कर दिया।
आपको बताते चले पीढ़ित दुर्गेश की शिकयत के अनुसार दवा बेचने वाली कंपनी में मेडिकल रिप्रेंजेटिव के पद में काम करने वाले दुर्गेश राठौर के साथ तीस अक्तूबर को तेलीपारा स्थित मेडिकल कांप्लेक्स में मेडिकल कंपनी के मैनेजर रंजित सिंह,प्रकाश सिंह,प्रिंस पांडे,सागर शर्मा ये सभी मारपीट कर,पीढ़ित को जबरन अपने साथ मंगला चौक के पास स्थित अभिषेक विहार अपनी कंपनी के ऑफिस ले जाकर अपने ऑफिस में फिर से मारपीट कर बकाया रकम वसूल करने के लिए जबरदस्ती उससे चेक में हस्ताक्षर लेकर तीन चेक ले लिए।अपने ऑफिस में रॉड स्टांप से हमले की कोशिश करने का प्रयांस कर उसके साथ मारपीट और गाली गलौच कर उसके वेतन की राशि को जबरन लेने के लिए दबाव बनाया।
एक पक्ष की कोतवाली पुलिस ने सुनी
इस मामले के सामने आने के बाद कोतवाली पुलिस ने पीड़ित दुर्गेश की शिकायत को नजर अंदाज कर करते हुए शिकायत को लेकर पावती देना भी मुनासिब नहीं समझा,और वही रंजित सिंह के थाने में आकर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के दोस्तो के खिलाफ मारपीट शिकायत पर कोतवाली पुलिस ने अपराध दर्ज कर लिया।
बताया जा रहा की एक नवंबर को पीढ़ित के साथी दूसरे पक्ष के मारपीट करने वाले मेनेजर के पास बातचीत करने गए थे।लेकिन इनके बीच विवाद गहरगाया और पीढ़ित के साथियों ने मारपीट की घटना को अंजाम दे दिया।मारपीट की घटना सीसीटीवी में कैद गई।इस वीडियो को आधार बनाकर दूसरे पक्ष के लोग मामला कायम करवा दिया गया।
लेकिन वही मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के पास उस समय उसके पास कोई फुटेज और सबूत नहीं होने पर पुलिस ने दुर्गेश की बात को अनसुनी कर बातो को गंभीरता से नहीं लेते हुए।पीढ़ित दुर्गेश की शिकायत तक भी नही ली गई।पुलिस ने मामले को चलता कर दिया,और अपना पल्ला झाड़ते हुए थाना सिविल लाइन का हवाला देकर उनको थाना से जाने की सलाह दे डाली।
सिविल लाइन में लगा रहा दिनभर मजमा
जिसके बाद गुरुवार को पीढ़ित पक्ष और उनके साथी बड़ी संख्या में एकजुट होकर पुलिस से न्याय की गुहार लगाते हुए थाना सिविल लाइन पहुंचे।देर रात तक सभी लोग थाने परिसर में खड़े रहे।पर सिविल लाइन पुलिस ने सिर्फ पीढ़ित दुर्गेश का बयान लेकर,मामले में जांच पड़ताल कर कार्रवाई करने की बात कहते हुए इनको वहा से भी चलता कर दिया।इस पूरे घटनाक्रम में पीढ़ित का मुलाहिजा भी कराना पुलिस ने मुनासिब नहीं समझा।
ऑफिस में मारपीट की फुटेज गायब
एक बात और सामने आई है।इस पूरे घटनाक्रम में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव युवक का अपहरण कर उसको मंगला चौक स्थित दूसरे पक्ष के लोग अपने ऑफिस लेकर गए तो उक्त ऑफिस में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए है।जो ऑफिस के अंदर और बाहर सभी जगह पर लगे हुए।जो पूरे ऑफिस को कवर करके आने जाने वाले सभी लोगो की पूरी हरकत उसमे कैद हो जाती है।लेकिन पुलिस को जो सीसीटीवी फुटेज मिला है उसमे पीढ़ित युवक अंदर आते और जाते साफ दिखाई दे रहा है।लेकिन अंदर के सीसीटीवी से फुटेज गायब है।जहा पर उसके साथ गाली गलौच,मारपीट,के बाद चेक में साइन लिया गया। इस मामले में पुलिस इस बात को स्पष्ट नही कर रही है।की आखिर अंदर का फुटेज गायब या डिलीट कैसे हो गया।डिलीट भी हुआ है तो पुलिस उस फुटेज को रिकवर कर इस मामले का खुलासा कर दूध का दूध और पानी का पानी कर अपनी स्थिति को स्पष्ट कर,पुलिस के ऊपर लग रहे आरोप को दूर करे।
कोतवाली पुलिस की कार्रवाई में चुप्पी क्यों?
इस पूरे घटनाक्रम में गौर किया जाए तो सबसे बड़ी भूमिका कोतवाली पुलिस की थी।जो एक पक्ष का सुन कर दूसरे पक्ष को अनसुना कर इस मामले को और पेचीदा बना दिया।यदि समय रहते कोतवाली पुलिस शिकायत पर जांच कार्रवाई कर बयान लेकर आगे की कार्रवाई में जुट जाती तो आज इनको न्याय के लिए भटकना नहीं पड़ता और मामला इतना पेचीदा नही होता।लेकिन इस पूरे मामले में कोतवाली पुलिस की कार्रवाई नही के बराबर रही।और वही दूसरे पक्ष को अनसुना कर चुप्पी साधे रहने से कई सवालिया निशान को जन्म देते है।
विश्वनीय सूत्रों की माने तो निजी अस्पताल के संचालक और बीजेपी के नेताओ के दबाव में पुलिस पीड़ित को इंसाफ नही दिला पा रही है । सायबर के मामले में जनता को जागरूक करने वाली बिलासपुर पुलीस के पास डिलीट डाटा को रिकवर करने की तकनीक भी मौजूद नही है । ऐसे में सवाल उठना लाजमी है की आखिर पुलिस सायबर फ्राड से पुलिस जनता को कैसे निजात दिला पाएगी ।