छत्तीसगढ़ के चुनावी मैदान में जगह तलाशते हुए तीसरा दल

बिलासपुर-छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अभी 2 साल का वक्त बाकी है लेकिन इससे पहले ही भाजपा और कांग्रेस पार्टी ने अपनी अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी है। डिजिटल से लेकर फिजिकल सदस्यता और अलग-अलग मुद्दों के बहाने जनता के बीच बड़े नेताओं का पहुंचने का सिलसिला अब शुरू होता नजर आ रहा है।लेकिन छत्तीसगढ़ में इन दिनों तीसरे मोर्चे को लेकर सूबे के हर जगह चर्चा हो रही है।

हर ठेले खोमचे चौक चौराहों में तीसरे मोर्चे और उसके स्थिति को लेकर जमकर आम जनों के बीच कौतूहल मचा हुआ है। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद जोगी कांग्रेस बुरी तरह लड़खड़ाई हुई नजर आ रही है।तो बरसाती मेंढक की तरह आम आदमी पार्टी एक बार फिर चुनाव से पहले मुट्ठी भर लोगों के साथ मैदान पर अपनी जमीन तलाशने में जुट गई है।इतना ही नहीं कुछ पार्टियों के पास तो मुट्ठी भर लोग भी नहीं है। लेकिन इन पार्टियों के नेता विज्ञापन और कुछ बंधे हुए सूचना देने वालों की बदौलत हांका पड़ते पीछे नजर नहीं आ रही है.. छत्तीसगढ़ की जनता को भी अभी तक मजबूत तीसरा मोर्चा नहीं मिला है इसलिए आज भी दोनों केंद्रीय पार्टियों का वर्चस्व प्रदेश में मजबूत नजर आता है चुनाव के साल 2 साल पहले आपको चौक चौराहे रोड ठेले खोमचे में कुछ नेताओं के बैनर पोस्टर तो देखने को मिल जाएंगे लेकिन आम आदमी के मुद्दे को लेकर इनके नेता सड़क पर उतरते नजर नहीं आते हैं।

बिलासपुर के बस स्टैंड में स्थित एक अपार्टमेंट में निजी ऑफिस में एनसीपी का पूरा लेखा-जोखा चल रहा है। महाराष्ट्र कि सत्ता में एलायंस के साथ काबिज एनसीपी की छत्तीसगढ़ में हालत इस तरह है कि निजी होटल में कार्यक्रम आयोजित करने के बाद प्रदेश अध्यक्ष जब कार्यक्रम में पहुंचे तो 90 प्रतिशत कुर्सियां खाली मिली मुश्किल से 30 लोगों के बीच प्रदेश अध्यक्ष का कार्यक्रम हुआ। लेकिन तारीफ इस बात की प्रदेश प्रवक्ता निलेश विश्वास की करनी चाहिए कि उन्होंने ढोल बहुत पीटे थे भले ही बाद में साफ हो गया कि ढोल फटे हुए थे और इसकी आवाज कार्यकर्ताओं के कानों तक में नहीं पहुंची थी।लेकिन निजी कार्यालय से पार्टी का संचालन करने वाले प्रदेश प्रवक्ता जनता के मुद्दों को लेकर अब तक सड़क पर उतरते नजर नहीं आए हैं लेकिन बात जब सदस्यता की आती है तो छप्पर फाड़ डिजिटल सदस्य बनाने का दम पूरी जोर से हांकते नजर आते हैं।आलम यह है कि एनसीपी के जिला पदाधिकारी मीडिया से तक अब तक ठीक से रूबरू नहीं हो पाए हैं। और शायद ही कोई ऐसा चौक चौराहे में आमजन आपको मिल जाए जिन्हें इनके जिलाध्यक्ष का नाम उन्हें पता हो महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना के साथ कुर्सी में चिपक कर बैठी एनसीपी और इनके नेता प्रदेश की सत्ता में काबिज कांग्रेस की पार्टी के खिलाफ चुनावी बिगुल तो फूंकते हैं लेकिन उस बिगुल से सिर्फ हवा ही बाहर जाती प्रतीत होती है।एनसीपी में बैठे कनखजूरे दबी जुबां में बताते हैं कि एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष नोबल वर्मा जब शहर में स्थित निजी होटल के और में पहुंचे थे तब इनके पदाधिकारियों को छोड़ सिर्फ मीडियाकर्मी नजर आए थे और जब अपना काम कर मीडियाकर्मी वहां से निकल गए तब खाली कुर्सियों को देखकर प्रदेश प्रवक्ता को जमकर फटकार पड़ी थी।जिसके बाद भी तक अब प्रदेश प्रवक्ता अपने निजी ऑफिस से पार्टी का बिगुल फूंकने में लगे हुए हैं।लेकिन अब तक जनता को उनके दुर्लभ दर्शन का इंतजार है।ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपने आप को तीसरा विकल्प कहने वाले नेता चुनाव के समय कितना जनाधार अपनी ओर खींचने में सक्षम हो पाएंगे या फिर पार्टी के नाम पर अपना नाम बनाकर बड़े नेताओं को खुश करते रह जाएंगे।

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