पुलिस प्रशासन की दया दृष्टि के चलते अब तक नही हो सका डॉ मधुलिका सिंह (सँयुक्त संचालक स्वास्थ्य) के ऊपर एफआईआर दर्ज हाइकोर्ट के आदेश का बनाया जा रहा मजाक
बिलासपुर – जिला अस्पताल की सिविल सर्जन और बिलासपुर की पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मधुलिका सिंह के खिलाफ चार करोड़ 90 लाख रुपये के भ्रष्टाचार के मामले में हाईकोर्ट ने FIR दर्ज करने का आदेश दिया है । इसके साथ ही राज्य शासन को विभागीय जांच व घोटाले के दोषियों से राशि वसूलने का भी आदेश दिया गया है । बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के सम्बंध में शिकायत कर्ता ने अधिवक्ता के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की गई थी । जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस पी. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच ने की बतादें कि डॉ. मधुलिका सिंह सीएमएचओ के पद पर थी।
इस ऑडिट रिपोर्ट को शासन को सौंपे जाने के बावजूद उन्हें संयुक्त संचालक पद का दोहरा दायित्व सौंप दिया गया और रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद डॉ. मधुलिका सिंह तथा अन्य दोषी लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश पुलिस अधीक्षक को हाईकोर्ट ने दिया है। इसके अलावा याचिकाकर्ता को इस प्रकरण से सम्बन्धित दस्तावेज पुलिस को उपलब्ध कराने को कहा गया है। राज्य शासन को भी इस मामले में विभागीय जांच, वसूली तथा अन्य कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ता को यह छूट भी दी गई है कि वह चाहे तो इस मामले में अलग से आपराधिक प्रकरण दायर कर सकता है।याचिका में कहा गया है कि सीएमएचओ कार्यालय की ओर मितानिनों की नियुक्ति उनके प्रशिक्षण तथा दवा खरीदी सहित अन्य कार्यों के लिए चार करोड़ 90 लाख 35 हजार 371 रुपये खर्च किये गये थे । महालेखाकार कार्यालय की टीम ने इस खर्च की ऑडिट सात जनवरी 2005 से 20 जनवरी 2005 तक के मध्य पूरा किया । ऑडिट रिपोर्ट पर आने पर पता पड़ा कि शासन की ओर से आबंटित राशि की जमकर गड़बड़झाला किया गया है | इस राशि की गड़बड़ी एक सितम्बर 2003 से 31 दिसम्बर 2004 के बीच की गई । ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि इंदिरा स्वास्थ्य मितानिन कार्यक्रम में 45.20 लाख रुपये, अंधत्व निवारण कार्यक्रम में 41.95 लाख रुपये, नसबंदी ऑपरेशन में 14.96 लाख रुपये का अधिक अथवा गलत भुगतान किया गया। इसके साथ स्वीकृत पद से अधिक स्टाफ रखकर 13.62 लाख रुपये का अधिक भुगतान करने की बात भी सामने आई है।ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि दो करोड़ 50 लाख रुपये का कोई हिसाब ही नहीं है जो रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ प्रोग्राम के लिए आबंटित किये गये है।इस राशि को खर्च किया जाना बताया गया है लेकिन इसका अभिलेख और खर्च के वाउचर ही उपलब्ध नहीं कराये गये।
सरकंडा पुलिस द्वारा किया जा रहा हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन- इस पूरे मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय से भी आवश्यक दस्तावेज सरकंडा थाने को दिया गया है लेकिन इसके बाद भी आज दिनांक तक कार्यवाही नहीं हो सकी है इससे प्रत्तित हो रहा है कि पुलिस प्रशासन के द्वारा लापरवाही बरती जा रही हैं व दोषियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।