ब्रेक फेल बस ने मचाया तांडव….यातायात विभाग और आरटीओ विभाग की उदासीनता और लापरवाही हुई उजागर….

बिलासपुर–छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में गुरुवार को एक बड़ा हादसा टल गया, जब एक ब्रेक फेल बस अचानक अनियंत्रित होकर सड़क किनारे खड़े एक खंभे और वहां खड़ी एक एक्टिवा गाड़ी से जा टकराई। बस की चपेट में आने से एक्टिवा गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई।घटना की भयावहता को देखकर आसपास के लोग सहम गए। हादसे के वक्त सड़क पर थोड़ी भी भीड़ होती, तो कई जिंदगियां खत्म हो सकती थीं। गनीमत रही कि घटना के समय सड़क खाली थी और कोई पैदल यात्री या वाहन चालक उसकी चपेट में नहीं आया।

यह घटना न केवल बस चालक की लापरवाही का परिणाम है, बल्कि इससे कहीं अधिक जिम्मेदार बिलासपुर का ट्रैफिक और क्षेत्रीय परिवहन (आरटीओ) विभाग है, जिनकी अनदेखी और उदासीनता ने शहर की सड़कों को मौत के कुंए में बदल दिया है। आए दिन ब्रेक फेल, ओवरलोडिंग, बिना फिटनेस के दौड़ते वाहन और बेतरतीब यातायात व्यवस्था आम नागरिकों के जीवन को संकट में डाल रही है।दरअसल यह घटना सिविल लाइन थाना क्षेत्र के अंतर्गत इंदु चौक की है।जहां पर यात्री से भरी बस सवारी भरकर अपने गंतव्य की और जा रही थी कि अचानक बस का ब्रेक फैल हो गया।जो चौक में लगे एक खंभे से जा भिड़ी।इसी बीच सामने एक एक्टिवा गाड़ी खड़ी थी।जो बस की चपेट में आकर क्षतिग्रस्त हो गई।

हादसे के बाद जब स्थानीय लोगों ने बस को नजदीक से देखा, तो पता चला कि बस की हालत जर्जर थी। टायर घिसे हुए थे, ब्रेक सिस्टम पूरी तरह खराब था, और फिटनेस सर्टिफिकेट भी कई महीने पुराना था। सवाल उठता है कि ऐसी बसें कैसे शहर की सड़कों पर दौड़ रही हैं? क्या आरटीओ विभाग ने कभी इनका फिटनेस टेस्ट किया? या फिर ये सब ‘महीने की वसूली’ के साए में हो रहा है?

ट्रैफिक पुलिस की भूमिका भी इस मामले में कठघरे में है। शहर में हर चौराहे पर चालान काटने और हेलमेट जांच के लिए खड़े जवान क्या कभी इन भारी वाहनों की तकनीकी जांच करते हैं? ज्यादातर मामले में देखा गया है कि बिना फिटनेस, ओवरलोड और डगमगाती हालत की बसें बेधड़क शहर में दौड़ रही हैं, और यातायात विभाग आंख मूंदे बैठा है।

इस हादसे ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बिलासपुर की ट्रैफिक और आरटीओ व्यवस्था पूरी तरह लापरवाह और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। यदि समय रहते इन विभागों ने अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से निर्वहन किया होता, तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता था। लेकिन हकीकत यह है कि सड़कों पर दौड़ती अधिकांश बसें किसी न किसी “सिस्टम की मेहरबानी से ही चल रही हैं।

अब जरूरी है कि इस घटना को केवल एक ‘दुर्घटना’ मानकर नजरअंदाज न किया जाए। प्रशासन को चाहिए कि तत्काल प्रभाव से आरटीओ और ट्रैफिक विभाग की संयुक्त जांच टीम बनाई जाए, जो सभी निजी और सरकारी बसों की फिटनेस, दस्तावेज़ और तकनीकी स्थिति की जांच करे। साथ ही दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, चाहे वह बस मालिक हो, आरटीओ अधिकारी हो या ट्रैफिक पुलिस का जवान।

इस बार तो जान बच गई, अगली बार किसकी बारी होगी? यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जनता अब जवाब मांग रही है — क्या सिस्टम सिर्फ हादसे के बाद जागेगा, या समय रहते कोई ठोस कदम उठाएगा?

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