कोविड में बनी थी उजली छवि, अब स्वयं ही दागदार कर रहे है पुलिसकर्मी..
दुसरा मामला 17 अगस्त का है जब महिला बाल विकास विभाग, बाल संरक्षण अधिकारी और पुलिस की मौजूदगी में एक तरफ एक सामाजिक कार्यकर्ता पेशे से अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला के साथ पुलिस ने मारपीट कर दी.. साथ ही जिस आदेश को पुरा करने टीम गई थी, उसके परिपालन में उचित मार्गदर्शन नही हुआ.. एचआईवी पीड़ित बच्चीयों को ना केवल मारा पीटा गया.. बल्कि वाहन में बैठालने के नाम पर दौड़ाया भी गया.. अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला ने जब कार्यावाही का विरोध किया तो उनके साथ भी मारपीट हुई यहां तक की उनका कपड़ा भी खींच कर उतारने की कोशिश हुई.. पुलिस वालों ने धारा 184 के तहत मामला दर्ज किया.. विरोध होगा समाचार लगातार घुम रहा था.. तो रात्री 8 बजे तक उन्हें किसी थाने नही लाया गया.. देर रात बिल्हा कोर्ट में प्रस्तुत किया गया जहां से जमानत हो गई.. वे आज पुलिस के विरूद्ध एफआईआर के लिए प्रयासरत थी.. इसके पूर्व भी महिलाओं की शिकायत पर गंभीरता से जांच ना करना, जिले की पुलिस की आदत हो गई.. एक वर्ष पूर्व सिरगिट्टी थाने में एक महिला एक पुलिस सिपाही के विरूद्ध भी दैहिक शोषण का मामला दर्ज कराने कई चक्कर काटी.. उसके पास पुलिस अधिक्षक ग्रामीण की टेक नेसेसरी एक्शन वाला पत्र भी था.. किन्तु किसी भी फोरम पर उसकी शिकायत नही ली गई.. बाद में पुलिस सिपाही ने दबाव डाल कर समझौता कर लिया.. एक नही ऐसे कई मामले में है जिससे यह लगता है कि.. जिले में दो-दो वरिष्ठ अधिकारियों के तमाम निर्देश के बावजूद उनके अधिनस्थ कर्मी अपनी मर्जी का काम ही करते है.. इससे राज्य सरकार की छवि खराब हो रही है