
आखिर पत्रकार के सवाल पर क्यों भड़के एसएसपी……?पत्रकार का नहीं पुलिस का विभागीय मसला–एसएसपी जानिए क्या पूरा मामला…..
बिलासपुर–सालों से चल रहे टेलीविजन में सी आई डी सीरियल के चर्चित डायलॉग ” दया कुछ गड़बड़ है ” कि तरह ही जोनल पुलिस प्रयोग शाला का हाल हो चुका है बस यहां ” भाया कुछ तो गड़बड़ ” हैं कहना सही होगा।
बड़े अपराध में अहम भूमिका निभाने और अपराध को उस दिशा में ले जाने के लिए पुलिस और न्यायलय में कारगर एक साक्ष्य और सुराग के रूप में एफएसएल जांच और उसकी रिपोर्ट के लिए गृह विभाग के द्वारा बिलासपुर में संचालित प्रयोगशाला है।लेकिन इस प्रयोगशाला में कार्यरत में कर्मचारियों के द्वारा एफएसएल रिपोर्ट के नाम पर थाना से लाए गए नमूना को लेकर कोई न कोई कमी का हवाला देकर उसमें स्कूटनी करने के कारण थाने में दर्ज अपराध की विवेचना और आगे की कार्रवाई के साथ न्यायलय में साक्ष्य पेश करने जैसे विषय बाधित हो रहे है।जिसको लेकर थाना स्तर में तैनात विवेचकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।स्कूटनी के नाम पर खेले जा रहे खेल को लेकर पुलिस थाने में पदस्त विवेचक भी समझ रहे है।यही नहीं यह खेल आज का नहीं है।काफी लंबे समय से चला आ रहा है।आखिर इस खेल के पीछे का खिलाड़ी कौन है वह स्पष्ट नहीं हो पाया।लेकिन कही न कही एक आरक्षक जरूर चर्चा का विषय का बना हुआ है।इस आरक्षक की कारजूरियों से पूरा पुलिस महकमा भली भांति वाकिफ है।
विवेचकों को जानकारी का अभाव
एफएसएल विभाग के द्वारा ऐसा बताया जा रहा की एफएसएल जांच के लिए जो फॉर्म दिया जाता है उसको लेकर थाने के विवेचक गंभीरता से उसे नहीं लेते। आधी अधूरी जानकारी भरकर भेजने के कारण वापस कर दिया जाता है।लेकिन वहीं विवेचकों का यह कहना कि कई बार जो जानकारी मांगी जाती है वह स्पष्ट रूप से समझ से परे होती क्योंकि अंग्रेजी के साथ साथ राइटिंग घसीटा होने के कारण।
कार्यशाला का आयोजन
ऐसे गंभीर विषय को लेकर विवेचक यदि लापरवाही बरत रहे थे तो यह पुलिस विभाग के लिए एक गंभीर विषय है।क्योंकि एफएसएल रिपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण विषय जो साक्ष्य के रूप में और आगे की कार्रवाई को तय करने में कारगर एक कदम के रूप में अपनी भूमिक निभाती है।तो ऐसे में विवेचकों को समय समय में कार्यशाला का आयोजन कर इनको संपूर्ण जानकारी के साथ प्रशिक्षित करने की आवश्यकता भी है।
चर्चित आरक्षक और सेवा शुल्क
पुलिस थाने में पदस्त पुलिस कर्मी इन दिनों एफएसएल विभाग के द्वारा स्कूटनी को लेकर बार बार थाने से गए पुलिस जवान को वापस लौटने को लेकर उनकी जांच की बिंदु और आगे की कार्रवाई को लेकर साक्ष्य पेश करने तक में आ रही परेशानी से काफी चिंतित है।वही पुलिस विभाग में यह भी चर्चा हो रही है कि नामचीन और पुराने चर्चित आरक्षक की तैनाती वहां है।जो अपने खुरापाती दिमाग से वहां पदस्त कर्मचारियों से एफएसएल के नाम से थानों से आए जवानों के पेपर में कमी निकाल कर उनको वापस भेजने और परेशान करने का काम किया जा रहा है।वही बार बार की खामियों से अच्छा की सेवा शुल्क देकर इन झंझटो से मुक्ति पाने के लिए मांग की गई रकम का भुगतान करने की भी बात सामने आ रही है।
रेंज से आते है एफएसएल जांच के लिए
आपको बताते चले कि बिलासपुर पुलिस रेंज में आने वाले सभी थानों से एफएसएल रिपोर्ट के लिए पुलिस जवान यहां आते है।दीगर जिले से आने वाले जवान स्कूटनी से बचने के लिए इनकी सेवा में कोई कमी नहीं करते।उनका भी कहना की इतने दूर से आते है आने जाने और समय को देखते हुए इनकी सेवा कर दी जाती है।आपको जानकारी देते चले कि रेंज में बिलासपुर कोरबा चांपा –जांजगीर, रायगढ़,सारंगढ़,मुंगेली ,पेंड्रा–गौरेला– मरवाही जैसे कुल सात जिले आते है,जिसमें लगभग 75 से 80 थाने आते है।बिलासपुर जिले की ही बात करे डेढ़ दर्जन के लगभग थाने यहां संचालित है।आप इसी बात से अंदाज लगा सकते है कि पूरे रेंज से लगभग रोजाना एफ एस एल रिपोर्ट के लिए रोजाना कितने मामले आते होंगे।
विभागीय और जनहित से जुड़ा हुआ विषय
भले ही इसे पुलिस इसे गोपनीय तरीके से इस कार्य को करती है, पर अपराध से जुड़े होने के कारण यह आम जनता से जुड़ा हुआ विषय है।कही न कही पीड़ित को न्याय की एक उम्मीद और पुलिस को अपराधियों तक पहुंचने के अलावा अपराधियों को सजा दिलाने में इस रिपोर्ट की अहम भूमिका रहती है।
क्या है एफएसएल
एक बहुविषयक संस्था है, जिसमें आधुनिक एवं अद्यतन परिष्कृत उपकरणों तथा सत्यापित वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से अपराध से संबंधित भौतिक साक्ष्यों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है।
कानून के जानकर क्या कहते है
इस मामले को लेकर कानून के जानकर अधिकवक्ता देवेश दीक्षित का कहना कि साक्ष्य को लेकर पुलिस विभाग को गंभीरता से कार्रवाई करना चाहिए। एफएसएल रिपोर्ट में हो रही देरी के लिए चर्चा की जा सकती है।
एसएसपी ने क्या कहा
गुरुवार को जिले के एसएसपी रजनेश सिंह उस समय भड़क गए जब उनसे उनके विभाग के द्वारा एफएसएल रिपोर्ट को देने में की जा रही लेटलतीफी और स्कूटनी को लेकर सवाल किया गया।सवाल सुनते ही एसएसपी ने जवाब देते हुए यह बताया कि ये विभाग का अंदरूनी मामला है।यह पत्रकारों का विषय नहीं है।
जांच टीम गठित कर खबर की पुष्टि कर ले
पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को लगता है कि इनके विभाग को लेकर जो खबर लिखी जाती है।या दिखाई जाती है तो उन खबरों पर आप जांच करवा कर दूध का दूध और पानी का पानी की स्थिति साफ तौर पर स्पष्ट हो जायेगी।आपके पास जांच के सारे उपकरण और संसाधन उपलब्ध है।फिर देर किस बात की।वैसे भी एंटी सायबर क्राइम यूनिट की अभी हाल में की गई समीक्षा में कोई खास उपलब्धि उनके द्वारा किए गए कार्य पर नजर नहीं आई,यदि लगता है तो इनको ही जांच का जिम्मा देकर जांच कार्रवाई के लिए निर्देशित कर इनको भी एक मौका दिया जा सकता है।वैसे भी इनके पास कोई खास काम तो रहा नहीं आप लोगों के द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार।
बहरहाल अब देखना यह होगा कि आखिर पत्रकार के सवालों पर भड़कने वाले एसएसपी अब किस तरह से अपने विभाग को कंट्रोल करने और उनके विभाग में सेवा शुल्क के नाम पर बाध्य करने वालों आरोप पर आगे क्या कार्रवाई करते है।भले ही एसएसपी साहब दो दशक से अधिक समय में से पुलिस विभाग में अपनी सेवा दे रहे है पर किसी विषय को लेकर इस तरह से नकारना उचित नहीं है।ऐसे में उनकी एक साफ सुथरी छवि पर असर पड़ने लगेगा।