डीजीपी को नोटिस मिलते ही थाने दौड़ी कप्तान साहिबा ..! विवादित आरक्षकों के चलते अफसर हो रहे बदनाम ..! बदनाम आरक्षकों को किसने दी कमान ..?

बिलासपुर–मानवधिकार आयोग द्वारा जारी छत्तीसगढ़ DGP को नोटिस के बाद से छत्तीसगढ़ की बिलासपुर पुलिस इन दिनों खासी चर्चा में बनी हुई है।बिलासपुर पुलिस को सुस्त और लचर कांनून व्यवस्था के कारण एक युवक को खुदखुशी करनी पड़ गई है।और तीन दिनों तक समाज के लोगो के आक्रोश से पुलिस भयभीत नजर आती रही।

जिस युवक की मौत के बाद मचे घमासान की छपी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर NHRC ने स्वत संज्ञान लेकर DGP को नोटिस जारी कर जबाब मांगा है। वही दूसरी ओर बिलासपुर पुलिस मीडिया रिपोर्ट के आधार पर अपने विभाग के चर्चित और बदनाम आरक्षक , वर्दीधारियों के बारे में कुछ भी बोलने से बचती रही है। परिणामस्वरूप ऐसे बदनाम पुलिसकर्मी के चलते अधिकारी पर शक की सुई घूम रही है।
कबाडियों ,सट्टा , गांजा , जुआ जैसे काले कारोबारों के शातिरों से इनके घनिष्ठ सम्बन्धो की छपी खबरों के चलते रेंज के आई जी के तबादले की भी सुगबुगाहट विभाग में भी चल रही है।लेकिन उसके बाद भी ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ उच्च अधिकारीयो की चुप्पी से जिले के बडे अधिकारों खुद संदेह के घेरे में फंसते जा रहे है।

बिल्हा में हुई युवक की मौत के बाद एसएसपी पारुल माथुर शुक्रवार को बिल्हा थाने पहुची और इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए। लेकिन सूत्र बताते है कि जिस थाना परिसर में जिस स्थान पर मारपीट की गई थी वहां सीसीटीवी नहीं लगा हुआ है,और इसी आधार पर पुलिस अपने आप को इस प्रकरण में पाक साफ साबित करने की जुगत में जुटी हुई है।बिल्हा थाने के खिलाफ कुछ महीनों के अंदर गम्भीर मामलो का खुलासा हुआ था।लेकिन अधिकाररियो ने इसे न तो गम्भीरता से लिया और न ही मामले के सच जानने की कोशिश की,इतना ही नही एसएसपी के आदेश के बाद भी आरक्षक रूपलाल चंद्रा को बिल्हा थाने से रिलीव नही करने के कारण थाना प्रभारी की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे है।हालांकि एसएसपी साहिबा ने किंस वजह से अपने द्वारा निकाला गया आदेश निरस्त किया इसका जबाब वे ही बेहतर दे सकती है, लेकिन थाने में चर्चा है कि यदि मैडम ने आदेश निरस्त नही किया होता तो शायद आज युवक जिन्दा होता है और बिलासपुर एवम छत्तीसगढ़ पुलिस को इस तरह फजीहत का सामना नही करना पड़ता, जरूरत है समय रहते है ऐसे पुलिसवालो के खिलाफ सख्त और तत्काल कार्रवाई की
इतनी फजीहत के बाद अब अधिकारी सबक लेते है या नही ये तो आने वाले समय मे पता चल ही जाएगा। पर इतना जरूर है कि बिना अपने उच्च अधिकारियों की सहमति के बिना आरक्षक कुछ नही कर सकते है,और जब मामला फंसता है तो इसी तरह छोटे कर्मियों के खिलाफ गाज गिराकर मामले को रफा दफा कर दिया जाता है ,वैसे भी कहा जाता है कि थानेदार के एक पसन्द का सिपाही हर थाने में तैनात रहता है जो लेन देन के काम अपने रिस्क में बाकायदा थानेदार की सहमति के बाद ही करता है।

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