शव को बंधक बनाकर परिजनों से अधिक राशि लेने का लगा निजी अस्पताल पर आरोप,प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद शव परिजनों के सुपुर्द
मुंगेली से देवेंद्र शर्मा की रिपोर्ट
कोरोना महामारी के संकट काल में जहां लोग कोरोना उपचार के लिए सरकारी से लेकर निजी अस्पतालों में चक्कर लगा रहे हैं इसके बाद भी अस्पतालों में जगह मिल पाना या बेड मिल पाना मुमकिन नहीं है। राजधानी व न्यायधानी से लेकर प्रदेश के तमाम छोटे- बड़े अस्पतालों में यही आलम हैं।
लेकिन ठीक इसके उलट कुछ निजी अस्पतालों में अगर बेड मिल भी जा रहे हैं तो कुछ पैसे के लालची अस्पताल प्रबंधन के द्वारा उपचार के नाम पर जमकर लूट खसोट भी किया जा रहा है।चिकित्सा जगत को बदनाम करने वाला कुछ ऐसा ही मामला मुंगेली जिले में भी देखने को मिल रहा है।जहां पैसे के लालच में अस्पताल के संचालकों के द्वारा आपदा की इस घड़ी में भी अवसरों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है ।हद तो तब हो जाती है जब किसी गरीब की कोरोना से मौत हो जाती है और उसका परिवार इलाज की राशि का भुगतान कर पाने में सक्षम न हो तो उसके शव को देने से इंकार करना अस्पताल प्रबंधन की घोर लापरवाही और मनमानी रवैय्ये को उजागर करता है।
ये शर्मनाक मामला स्वास्थ्य मंत्री के प्रभार वाले मुंगेली जिले में कलेक्टर बंगले के कुछ ही दूर पर स्थित अवध लाईफ केयर नामक हॉस्पिटल में सामने आया है..जहां रानी डेरा निवासी यशोदाबाई टंडन की तबियत खराब होने पर 12 अप्रैल को जिला अस्पताल में दाखिल कराया गया था..जहां जांच में कोरोना टेस्ट कराने पर रिपोर्ट पॉजिटिव निकला।
तबियत बिगड़ने पर परिजनों के द्वारा मरीज को निजी हॉस्पिटल अवध लाइफ केयर में 14 अप्रैल को भर्ती कराया गया था।जहाँ 16 अप्रैल शुक्रवार शाम को उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई..जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन के द्वारा कोरोना मरीज होने का हवाला देते हुए उन दिन शव को देने से इंकार कर दिया गया..
वही शनिवार सुबह को जब परिजनों के द्वारा मृतिका के शव को डिस्चार्ज करने कहा गया तब 59 हजार का बिल अस्पताल प्रबंधन के द्वारा थमा दिया गया.. मृतिका के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन के द्वारा अनाप- सनाप बिल उन्हें भुगतान करने कहा जा रहा था और भुगतान नही करने पर शव देने से इंकार किया गया..परिजनों का यह भी कहना है कि शुक्रवार शाम को मौत हो जाने के बाद शव को अस्पताल में जो रखा गया उसका भी बिल जोड़ दिया गया था।
शनिवार सुबह 10 बजे से लेकर करीब शाम 5 बजे तक परिजनों के द्वारा जनप्रतिनिधि से लेकर कई अधिकारियों के माध्यम से फीस में कटौती करने व शव को देने की मांग को लेकर गुहार लगाई। मगर मानवता मर चुकी अस्पताल प्रबंधन ने एक न सुनी । अस्पताल में माहौल बिगड़ता देख आखिर में मुंगेली जिला प्रशासन के अधिकारियों ने हस्तक्षेप कर शव को अस्पताल प्रबंधन से परिजनों को दिलाया ।मुंगेली SDM नवीन कुमार भगत ने बताया कि शीर्ष अधिकारी जिले के संयुक्त कलेक्टर तीर्थराज अग्रवाल ने इस मामले पर अस्पताल प्रबंधन से मामले की पटाक्षेप के लिए बात की और परिजनों के द्वारा 25 हजार उपचार और 10 हजार मेडिसिन का बिल भुगतान किया गया तब कहीं जाकर शव को परिजनों को दिया गया।
आपदा के इस घड़ी में अवसर को भुनाने और शव को बंधक बनाने के मामले सामने आने के बाद जिले में राजनीति भी शुरू हो है..इस घटना तूल पकड़ता देख जहाँ बीजेपी ने सीधा जिला प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है..बीजेपी जिला अध्यक्ष शैलेष पाठक का आरोप है कि जिला प्रशासन और भूपेश सरकार कोरोना काल मे मरीजों के लिए उचित व्यवस्था करने में नाकाम तो है ही अब निजी अस्पतालों की मनमानी पर भी सरकार लगाम लगाने में फेल है।ऐसे में छत्तीसगढ़ की जनता का बेड़ागर्क होना स्वभाविक है।इधर बीजेपी के आरोपो का जवाब देते हुए कांग्रेस जिला अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने कहा है कि राज्य सरकार लगातार कोरोना संक्रमण रोकने प्रयासरत रत है..सरकार के निर्देशन में जिले के कांग्रेसी अधिकारियों के साथ समन्वय बनाकर कोरोना रोकथाम एवं मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके इसके कार्य कर रही है..रही बात निजी अस्पताल में शव को नही देने का मामला तो वे खुद इसके लिए जिला प्रशासन से बात कर कार्रवाई की मांग करेंगे।
स्वास्थ्य मंत्री के प्रभार वाले मुंगेली जिले में कई निजी अस्पताल नर्सिंग होम एक्ट की नियमो का धज्जियां उड़ाते बेख़ौफ़ अस्पतालों का संचालन कर रहे है..जिस पर कार्रवाई होना तो दूर की बात जांच तक नही होती..वही अवध हॉस्पिटल में हुए इस घटना से एक बात तो जाहिर है कि निजी अस्पतालों की मनमानी पर स्वास्थ्य विभाग एवं जिला प्रशासन शिकंजा कस पाने में नाकाम है।इसके अलावा चिंता का विषय यह भी है कि संकट की इस घड़ी में निजी अस्पताल मनमानी और लूट खसोट करने पर उतारू है जो कि बिल्कुल भी जायज नही है।
वही शासन द्वारा निजी संस्थानों को प्राप्त अनुमति सशर्त दिया गया है जिसमे कोविड मरीजो को सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार ही राशि दी जानी है पर हैरानी की बात है कि महज 3 दिन में 59 हजार का बिल कैसे बन गया वही जांच का सवाल यह है कि ऐसी स्थिति अन्य मरीजो के साथ भी तो नही हो रहा।।