कांग्रेसी नेता – भाजपा पार्षद की यारी थानेदार को पड़ी भारी… संदिग्ध अधिकारियों को ही पुलिस कप्तान ने दी जिम्मेदारी… धर्मनगरी के असली अधर्मी कौन ..?

बिलासपुर–न्यायधानी जिले की धार्मिक नगरी रतनपुर मे पुलिस प्रशासन ने अधर्म करते हुए रेप पीड़िता की मां को फंसाने की साजिश रच जेल दाखिल कर पुरे देश प्रदेश मे खाकी को शर्मसार कर दिया। पूरा मामला राजनैतिक रूप ले चूका है लेकिन कहानी के असली गुहागार अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। कहा जा रहा है की रतनपुर ब्लाक अध्य्क्ष रमेश सूर्या और बीजेपी पार्षद हकीम की दोस्ती ही रतनपुर थाना प्रभारी के अस्थाई लाइन अटैच होने की असली वजह बनी। इसके पहले भी कांग्रेसी नेता रमेश सूर्या को अपने रंगा बिल्ला को ब्लेकमेलिंग के आरोपियों को बचाने के लिए थाना प्रभारी कृष्णकांत द्वारा दबाब बना कर आरोपियों के सामने बयान बदलने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित तमाम बड़े पुलिस अधिकारियो से शिकायत की थी वह मामला भी एक महिला से जुडा हुआ था लेकिन पुलिस प्रशासन ने उस मामले मे कोई पहल नहीं की और आज तक उस मामले का सच दबा हुआ है.?

महिलाओ से जुड़े मामलों मे पहले कांग्रेसी नेता और अब बीजेपी पार्षद हकीम मोहम्मद का नाम आने के बाद से पुलिस विभाग मे दबी जुबा में चर्चा है की इस मामले मे पुलिस ने गलती की है लेकिन थानेदार कृष्णकांत को बलि का बकरा बना दिया गई जबकि जिले मे पदस्थ थानेदार अधिकांश लगभग हर मामलो मे अपराध दर्ज करने के से पहले पुलिस कप्तान को अवगत करा कर मामला दर्ज करते है।सूत्रों की माने कांग्रेसी नेता के रंगा बिल्ला ने बीजेपी पार्षद को राजधानी मे एक बड़े कद के सत्ता मे काबिज युवा नेता से मुलाक़ात कर पूरी साजिश की पटकथा लिखकर रेफ पीड़िता की माँ को झूठा फंसाया। पुख्ता सूत्रों की माने जिस वक्त महिला के खिलाफ FIR लिखी जा रही थी उस समय थाने मे एसडीओपी सिद्धांर्ध बघेल थानेदार कृष्णकांत के साथ मौजूद थे।ऐसे मे बिलासपुर कप्तान द्वारा गठित टीम मे एसडीओपी और एक निरीक्षक को जाँच टीम मे शामिल करने को लेकर कप्तान साहब भी संदेह के घेरे मे है।

जिस निरीक्षक को टीम मे शामिल किया गया है उसके खिलाफ भी कई संदिग्ध अंनसुलझी शिकायते पेंडिंग है।
सूत्रों की माने तो जिले के बड़े अधिकारी के निर्देश पर बिना मेडिकल जाँच के महिला का पक्ष जाने बिना सिर्फ बयान के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के नियमो का हवाला देकर तत्काल मामला दर्ज कर जेल भेज दिया गया।

तेज तेजतर्रार और दबंग पुलिस कप्तान संतोष सिंह द्वारा खाकी को कलंकित करने वाले अति सवेदनशील मामले मे टीआई को सिर्फ और जांच टीम में किसी महिला अधिकारी को शामिल ना करना उनके नेतृत्व क्षमता को साबित करने के लिए अपने आप में काफी है
जानकारी तो यह भी है की अपराध मे घटना की सही तारीख भी पुलिस बताने मे असमर्थता जाहिर कर रही है।

दुष्कर्म पीड़ित महिला की मां को जेल भेजने वाले थाना प्रभारी लाइन अटैच क्राइम पेट्रोल की तर्ज पर इस कहानी की रूपरेखा तैयार किया गया।खाकी की आड़ में ऐसे कितने बेगुनाह सजा काट रहे हैं। भ्रष्टसिस्टम बेपरवाह कानून निरीह प्राणी की हर हदे पुलिस प्रशासन ने पार कर दी है।

हमारे देश में लोगों की सुरक्षा के लिए दो तरह की सुरक्षा व्यवस्था है देश की बॉर्डर पर तैनात सुरक्षाकर्मी सीमा की सुरक्षा करते हैं तब हम चैन की नींद सो पाते हैं उन लोग अपनी जिम्मेदारी तो बखूबी निभा ही रहे हैं परंतु समाज में समाज की सुरक्षा के लिए जिन को रखा गया है वह क्या अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है बड़ा गंभीर सवाल है समाज की जिम्मेदारी निभाने के लिए पुलिस चौकी और थानों की नियुक्ति किया गया है लेकिन भ्रष्ट पुलिसिंग व्यवस्था के चलते अपने ही देश में अपने लोग निर्दोष लोग खाकी की कहर का शिकार हो रहे हैं लेकिन इस मामले में कोई कुछ नहीं कह रहा है न पॉलीटिशियन कुछ कह रही है न ब्यूरोक्रेसी कुछ कह रही है कहीं यह भी ऐसे ही किसी कारनामों से फसे तो नहीं है ताजा मामला छत्तीसगढ़ की धर्म नगरी कहे जाने वाली बिलासपुर जिले के रतनपुर थाना की है इसी थाना क्षेत्र अंतर्गत आरोपी शेख आफताब लंबे समय से इस क्षेत्र की इस युवती का शारीरिक शोषण कर रहा था एवं मार्च 2023 में उसे बेदम मारपीट कर रास्ते में फेंक दिया था पेट्रोलिंग कर रही रतनपुर की पुलिस ने युवति को डाक्टरी मुलाहिजा के लिए हॉस्पिटल पहुंचाया लेकिन उस युवती के द्वारा दिए गए बयान से यह पता चला कि उक्त आरोपी ने मारपीट किया है एवं लंबे समय से उनके साथ शारीरिक शोषण किया जा रहा है तब कहीं जाकर उस युवक को गिरफ्तार किया गया मामला यहां तक की है।

लोगों को लगा कि कानून ने अपना काम किया है लेकिन अभी 2 दिन पूर्व घटी इस घटना ने पूरे छत्तीसगढ़ के साथ-साथ देश में हड़कंप मचा दिया कि क्या पुलिस किसी की निजी ज्यादती दुश्मनी के लिए है यह लोगों के लिए है दरअसल चंद दिन पहले दुष्कर्म पीड़िता की मां को धारा 377 4 एवं 12 पास्को एक्ट लगाकर जेल में डाल दिया गया। दरअसल दुष्कर्म के आरोपी के एक रिश्तेदार ने 10 वर्षीय मासूम को लाकर पुलिस मे बयान दर्ज कराया कि दुष्कर्म पीड़ित की मां ने उसे चॉकलेट के बहाने ले जाकर उसके प्राइवेट पार्ट के साथ छेड़खानी किया है जिसकी शिकायत पर पुलिस ने त्वरित कार्यवाही करते हुए महिला को जेल भेज दिया।लेकिन बड़ा गंभीर सवाल यह है कि इसमें उस 10 वर्षीय मासूम का मेडिकल जांच नहीं किया गया नहीं उच्चस्तरीय जांच किया गया।

संवेदनशील मामला होते हुए भी उच्चाधिकारियों के संज्ञान में यह बात नहीं लाई गई दूसरी तरफ एक महीला के द्वारा बालक के प्राइवेट पार्ट से छेड़खानी बात गले से नहीं उतर रही है पूरा का पूरा मामला काउंटर केस का है जब कोई व्यक्ति किसी अपराध में फंस जाता है तो अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए सेम केस सामने वाले के ऊपर ठोक देता है कुछ इसी तरह का मामला है या जैसा कि दुष्कर्म पीड़ित युवती बता रही है कि लगातार उसे आरोपी के पक्ष के द्वारा धमकी चमकी एवं फसा देने की बात सामने आ रही है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि खाकी की आड़ में धाराओं के आड़ में ऐसे दलाली करने वाले टीआई चौकी प्रभारी छत्तीसगढ़ में कितने हैं इसके पहले सरगुजा अंचल में रेपिस्ट को छुड़ाने के लिए विजय नगर चौकी के प्रभारी के द्वारा ₹50000 रिश्वत का मामला भी छत्तीसगढ़ में सुर्खियों में रहा।

उस मामले में भी उक्त प्रभारी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई लेकिन छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक संवेदनशील एवं दबंग एसपी के नाम से मशहूर संतोष सिंह ने लोगों की बढ़ती जनाक्रोश को देखते हुए थाना प्रभारी कृष्णकांत सिंह को तत्काल लाइन अटैच कर दिया एवं तीन सदस्यीय जांच टीम जिसमें एएसपी ग्रामीण राहुल शर्मा एसडीओपी सिद्धार्थ बघेल निरीक्षक परिवेश तिवारी को एक हफ्ते के अंदर जांच प्रतिवेदन पेश करने के आदेश दिए गए हैं वही बेहद विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस फर्जी प्रकरण को बनाने के लिए थाना प्रभारी कृष्णकांत सिंह के द्वारा लाखों रुपए की रिश्वत की बात सामने आ रही है सवाल यह है कि अगर समाज में रक्षक ही भक्षक बन जाए तब आखिर समाज का क्या होगा ऐसे कितने मामले हैं चौकी प्रभारी और थानेदारों के जहां सेटिंग के नाम पर लगातार उगाही कर रहे हैं शोषण कर रहे हैं लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है और सबसे बड़ा सवाल है यही महिला मामले मे निर्दोष पाई जाती है और कोई गलत कदम उठा लेती है तो इसका जबाबदेह कौन होगा।

सहयोगी हेमंत वर्मा और अजित मिश्रा की रिपोर्ट

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