कटघोरा को जिला बनाने सड़क पर उतरे लोग,धरना-प्रदर्शन कर लगाए नारे, सौंपा ज्ञापन, तकरीबन दो सौ वाहनों में दो विधानसभा के प्रतिनिधि जाएंगे राजधानी रायपुर

रितेश गुप्ता/कोरबा

कोरबा-कटघोरा अनुविभाग को जिले का दर्जा दिए जाने की मांग ने एक बार फिर से जोर पकड़ लिया है।मंगलवार को गुरुद्वारा कॉम्प्लेक्स के पास अधिवक्ता संघ के साथ पत्रकार और आम लोगो ने धरना दिया। और जिले के दर्जे के लिए नारेबाजी की,विभिन्न संघो के सम्बोधन के बाद नायब तहसीलदार को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया।

अधिवक्ता संघ और वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया कि यह लड़ाई जितनी पुरानी है उतनी ही मजबूत भी कटघोरा को जबतक जिले का दर्जा नही मिल जाता उनका यह प्रदर्शन जारी रहेगा। तीन दशकों की अनदेखी और नगर के साथ छलावा अब बर्दाश्त नही किया जाएगा। संघ ने इस बात पर भी निराशा जाहिर किया कि तत्कालीन और मौजूदा सरकार के नुमाइंदों ने इस भावनात्मक मांग को एक चुनावी मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन जीत हासिल करने के बाद किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस मांग को पूरा करने, कराने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। ना ही इस दिशा में किसी तरह की सकारात्मक पहल की गई।

अधिवक्ता संघ के सचिव अमित गौतम ने कहा कि कटघोरा अनुविभाग जो प्रदेश भर की झोली राजस्व से भर रहा है। वह खुद ठगा हुआ महसूस कर रहा है। बड़े नेताओ ने अपने-अपने क्षेत्रों को तो जिले के रूप में गठित कर लिया लेकिन कटघोरा नगर जो जिला के तौर पर हर आहर्ता को पूरा करता है उसकी अनदेखी की गई. आने वाले दिनों में इस लड़ाई को आगे ले जाने और आगामी 26 जनवरी तक जिले का एलान कराने का संकल्प सभी ने लिया. बताया गया कि सम्भवतः अगले महीने दोनों ही विधानसभ के हजारो लोग रायपुर के लिए कूच करेंगे जहां सीएम भपेश बघेल से सीधे भेंटकर अपनी मांग और प्रस्ताव उनके सामने रखेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार और आंदोलन के संयोजक अशोक दुबे ने सरकार की मंशा और नीति पर अपनी गहरी चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि एक तरफ सारंगढ़, मनेन्द्रगढ़ और सक्ति सरीखे छोटे अनुविभागो को जिला बनाया जा रहा है वही भौगोलिक दृष्टि से इनसे दोगुने बड़े पोंड़ी-उपरोड़ा, पाली व कटघोरा क्षेत्र को आजतक जिले के लिए सूचीबद्ध ही नही किया. फिर चाहे पूर्ववर्ती डॉ रमन सिंह की सरकार हो या मौजूदा समय मे भूपेश बघेल के नेतृत्व की सरकार. कटघोरा की सुविधा, जरूरत और विकास की हमेशा अनदेखी हुई. 36 गढ़ो में से चार गढ़ आज भी कटघोरा अनुविभाग में स्थित है. 1904 में निर्मित व 1912 से संचालित सबसे पुरातन तहसील कटघोरा ही है. नगर के प्रशासनिक महत्व को देखते हुए अंग्रेजो ने भी इसे तहसील के दर्जा दिया था. तब आज के ज्यादातर जिले ग्राम पंचायत हुआ करते थे. यहां तक की 90 के दशक में जिला पुनर्गठन के लिए गठित दुबे आयोग ने भी कटघोरा को जिले का स्वरूप देने की सिफारिश अपने रिपोर्ट में की थी लेकिन पूर्ण जिला तो दूर यहां के निकाय सम्बन्धी अधिकारों की ही कटौती कर दी गई।

मंगलवार को हुए इस आंदोलन में हिस्सा लेने वालों में अधिवक्ता संघ की तरफ से सचिव अमित सिन्हा, कोषाध्यक्ष रवि आहूजा, नवीन दुबे, जगदीश जायसवाल, दिलीप झा, विजेन्द्र सिंह, धन्नु दुबे, राकेश पांडेय, रामकुमार निषाद, पुरषोत्तम दास, इजहार अली, गौतम चौधरी, हर्ष जायसवाल शामिल थे वही पत्रकारों में अशोक दुबे, नवीन गोयल, सत्या साहू, शारदा पाल, अरविंद शर्मा, राहुल सोनी, आकाश यादव उपस्थित रहे. स्थानीय नागरिकों में प्रदीप अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल, लक्की अलवानी, अभिलाष पांडेय, मोनी छाबड़ा, मोती मोरवानी, राजेश डिकसेना मौजूद रहे. सभी ने एक सुर में जिले के लिए शुरू हुई इस मुहिम को तेज करने की बात कही है।

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