सिम्स मर्चुरी में काम करने वाले दैनिक वेतन भोगी को आज तक नहीं मिला मेहनताना.. सेवा के बाद भी पेट भरने के लिए दर-दर भटक रहा कर्मचारी
कहा जाता है कि.. गरीब का पसीना सूखने से पहले उसका मेहनताना दे दिया जाना चाहिए.. लेकिन यह बात शायद बिलासपुर में लागू नहीं होती.. कोरोना काल के दौरान जिस समय पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था लॉकडाउन की वजह से चरमरा गई थी.. वही लाखों गरीब पैदल अपने घर की वापसी की ओर निकल चुके थे.. स्थानीय लोगों के पास भी रोजगार के साधन ना के बराबर ही बचे हुए थे.. इस दौरान सिम्स के मर्चुरी में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी अरविंद चौबे लगातार कोरोना काल में भी काम करते रहे..
लेकिन पिछले नौ दस महीनों से अरविंद को अपना जीवन यापन करने के लिए महंत आना के नाम पर एक फूटी कौड़ी तक नहीं मिल पाई है.. मर्चुरी में काम करने वाले अरविंद को दूसरों की लाश लेकर आए लोगों की मेहरबानियां के चलते राशन पानी मिल रहा था.. लेकिन काम कराने वाली एजेंसी हो या नगर निगम हो या सिम्स प्रबंधन इनके द्वारा एक भी बार मानता ना का भुगतान नहीं किया गया.. जबकि अरविंद चौबे लगातार अपनी आजीविका चलाने के लिए या तो दूसरों पर निर्भर होते थे या तो अपने परिवार से मांग कर अपना पेट भर रहे थे.. लेकिन इस गरीब का दर्द उस समय झलक पड़ा जब मीडिया का कैमरा उसके सामने पहुंचा.. उन्होंने बताया कि.. किस तरह को रोना काल में बिना अपने आप की चिंता किए वह लगातार काम करता रहा लेकिन निर्दई समाज और मतलब परस्त संस्थानों में अरविंद की तकलीफों को समझना तक मुनासिब नहीं समझा।।