आदिवासियों के आशियाने को उजाड़ने में लगे भूमाफिया….अवैध प्लाटिंग के नाम पर प्रशासन के ऊपर बनाया जा रहा दबाव….आदिवासी जमीन पर आखिर किसकी है नजर?
बिलासपुर–छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बिलासपुर नगर से महानगर के रूप में जाने जाना लगा।वही शहर के इस बढ़ते स्वरूप में धीरे धीरे नामचीन और रसूखदारों भू माफिया के रूप में जमीन के कारोबार में अपना पैर पसार कर मैदान में उतर आए।जिसके बाद से शहर में जमीन को लेकर एक बड़ा खेल शुरू हो गया।शहर की बेशकीमती जमीन पर भू माफिया अपनी नजर गढ़ाकर औने पौने दाम में लेकर लाखों करोड़ों रुपए बारे न्यारे करने में कोई कसर नहीं छोड़े।आज भी कई जमीन और कई ऐसे वर्ग के लोग है जहां पर इन भूमाफियाओं की नजर गढ़ी हुई है।जिनको अपने निजी स्वार्थ के लिए यह आज भी अपनी पूरी ताकत और रसूख के चलते इसे अपने कब्जे में करने का भरसक प्रयास बदस्तूर जारी है।एक तरफ जहां प्रदेश की बागडोर को आदिवासी मुख्यमंत्री संभाल रहे है।तो वही दूसरी और प्रदेश के आदिवासियों पर भय और कार्रवाई का मंजर दिखा कर उनको उनके ही आशियाने से उजाड़ने का एक खौंफ नाक खेल खेलने में शहर के भूमाफिया और रसूखदार प्रशासन पर दबाव बनाते हुए अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में आमादा है।आपको बताते चले कि छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में आज भी भूमाफियाओं और रसूखदारों के आगे प्रशासन नतमस्तक है।भले ही प्रदेश की सत्ता बदल गई है लेकिन आज भी भूमाफियाओं का राज बना हुआ।
दरअसल शहर में भूमाफिया इतने सक्रिय है। कि वह अब आदिवासियों की जमीन पर नजर गाढ़े हुए है।जबकि आदिवासियों की भूमि को संरक्षित करने के लिए कड़े नियम कानून बनाए गए हैं, जिसमें गैर-आदिवासी किसी भी स्थिति में आदिवासी भूमि की खरीद-फरोख्त नहीं कर सकते। संविधान और राज्य कानूनों के तहत आदिवासियों की भूमि सुरक्षित है, लेकिन न्यायधानी में भू-माफिया कानून कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए इन जमीनों की खरीद फरोख्त करने के लिए पूरी एडी चोटी लगाकर उसमें लगे हुए है।ऐसा ही एक मामला बिलासपुर के सरकंडा क्षेत्र का सामने आया जहां पर भूमाफिया अपने निजी स्वार्थ के लिए आदिवासियों परिवार को निशाना बना रहे है।जबकि यह मामला तीन वर्ष पुराना है।जहा पर एक आदिवासी के द्वारा अपनी जमीन को आदिवासियों को कई टुकड़ों में जमीन को बेच दिया गया था।जैसे जैसे समय बीतते गया वैसे वैसे इस पर आदिवासी परिवार के द्वारा अपना आशियाना बनाने के लिए अपनी जमा पूंजी के साथ घर बना लिया और कुछ बनाने में लगे हुए।लेकिन इस शहर के भूमाफियाओं को यह रास नहीं आ रहा है और उनके ही आशियाने को उजाड़ने के लिए पूरे तंत्र पर हावी होकर कार्रवाई के लिए दबाव बनाकर बेवजह आदिवासी जमीन मालिकों को परेशान किया जा रहा हैं।
सरकारी भूमि में प्लाटिंग
भूमाफिया के द्वारा आदिवासी जमीन में हुई प्लाटिंग को उलझाते हुए लगानी जमीन को सरकारी जमीन के साथ जोड़कर प्रशासन पर दबाव बनाकर इस मामले को और गरमाने में जुट गए है।जबकि पूरी जमीन लगानी है।जिस सरकारी खसरे का जिक्र किया जा रहा है।वह खसरा जमीन के उलट है।कही ना कही भूमाफिया के द्वारा इस पूरे मामले में कार्रवाई को लेकर दिलचस्पी के साथ प्रशासन को उलझा रहा है,उसमे प्रशासन को गौर करना चाहिए।
बहरहाल भूमाफिया जिस तरह से तीन साल पहले बिक चुके प्लाट्स को लेकर आज जो रुख को अपना रहे है।उसके पीछे का खेल कुछ और ही जो हम आपको अपने अगले अंक में उन भूमाफियाओं और रसूखदारों के कारनामे को लेकर आपके सामने अपनी खबर के साथ प्रकाशित करेंगे।