गोधन न्याय योजना अंतर्गत जिले में गोबर विक्रेताओं को किया गया 37 लाख 70 हजार से ज्यादा का भुगतान.. तीसरी किश्त में 8984.23 क्विंटल गोबर का 18 लाख भुगतान..
बिलासपुर जिले में गोधन न्याय योजना अंतर्गत पंजीकृत गौपालकों से अब तक 2 रूपये प्रति किलो की दर से 27 हजार क्विंटल से ज्यादा गोबर की खरीदी की गई है। विक्रेताओं को 37 लाख 70 हजार रूपए से ज्यादा का भुगतान किया गया है.. उप संचालक कृषि बिलासपुर ने बताया कि.. योजना प्रारंभ से अब तक तीन बार प्रत्येक 15 दिवस में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के पंजीकृत गोबर विक्रेताओं को भुगतान किया जा चुका है.. तीसरी किश्त में 1762 गोबर विक्रेताओं से 16 अगस्त से 31 अगस्त तक क्रय किये गये 8984.23 क्विंटल गोबर की कीमत 17 लाख 97 हजार रूपए का भुगतान भी किसानों को कर दिया गया है.. शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरूवा, घुरूवा एवं बाड़ी के तहत गौठानों की गतिविधियों में विस्तार करते हुएं सुराजी ग्रामों में बने गौठानों में गाय एवं भैंस पशुपालकों एवं गोबर विक्रेताओं से गोबर खरीदा जा रहा है जिसके कारण गांव, गरीब एवं किसानों को आर्थिक सहायता के साथ-साथ गौ संरक्षण में भी लाभ मिल रहा है.. फसलों की चराई से होने वाले नुकसान से भी निजात मिल रही है तथा गौपालन को प्रोत्साहन भी मिल रहा है..
गोधन न्याय योजना के ऐप से हो रही है गोबर खरीदी..
गोधन न्याय योजना एप्प के माध्यम से अब गोबर विक्रेताओं का पंजीयन तथा गोबर खरीदी तथा भुगतान का कार्य ऑनलाईन तरीके से आसानी से किये जा रहे हैं तथा एप्प के माध्यम से गौठान समिति से सचिव सहकारी समिति एवं गौठानों में नियुक्त नोडल अधिकारियों के द्वारा गोबर विक्रेताओं का पंजीयन गोबर खरीदी तथा गोबर खरीदी का भुगतान की प्रक्रिया आसान तरीकेसे किया जा रहा है। विगत 7 सितंबर 2020 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे के कर कमलों द्वारा गोधन न्याय योजना का एप्लिकेशन साफ्टवेयर का उद्घाटन किया गया है.. किसान एवं पशुपालकों से आग्रह किया गया है कि गोधन न्याय योजना में अधिक से अधिक संख्या में जुड़े साथ ही वो किसान भी जिनके पास पशुधन नहीं है वो भी अपना पंजीयन कराकर गोबर संग्रहण कर गोबर विक्रय कर सकते हैं तथा योजना का लाभ ले सकते हैं.. गोधन न्याय योजना में क्रय किये गये गोबर से स्व-सहायता समूहों द्वारा वर्मी कम्पोस्ट द्वारा नाडेप कम्पोस्ट खाद तैयार किया जा रहा है.. इस खाद को सहकारी समितियों के द्वारा किसान को उपलब्ध कराया जा रहा है, जिसके कारण परंपरागत खेती एवं जैविक खेती की ओर किसान का रूझान बढ़ रहा है.. साथ ही रासायनिक उर्वरकों के प्रति निर्भरता कम हो रही है एवं भूमि की की उपजाऊ क्षमता में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ खेती के लागत में भी कमी आ रही है जिससे किसान जैविक खेती को लेकर उत्साहित है..