रेडक्रॉस मेडिकल स्टोर की लापरवाही से मरीज हो रहे परेशान…..मरीजों के हितों के विपरीत है आदेश…..

बिलासपुर– प्रतिष्ठित छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (CIMS) के बाहर स्थित रेडक्रॉस मेडिकल स्टोर से जुड़ी एक चिंताजनक स्थिति सामने आई है। मरीजों की मानें तो यहां दवाओं की आपूर्ति में भारी अनियमितता बरती जा रही है, जिससे ज़रूरतमंद और गरीब मरीजों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है।

रेडक्रॉस मेडिकल स्टोर का संचालन एक सामाजिक सेवा के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि गरीब एवं मध्यमवर्गीय मरीजों को सस्ती दरों पर दवाएं मिल सकें। लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार के नियम और व्यवहार सामने आ रहे हैं, वे रेडक्रॉस की मूल भावना पर ही सवाल खड़े करते हैं।

मरीजों का आरोप है कि स्टोर में उन्हें डॉक्टर द्वारा निर्धारित मात्रा के अनुसार दवाएं नहीं दी जातीं। उदाहरण के लिए यदि किसी मरीज को 3 या 5 दिनों की दवा चाहिए, तो स्टोर के कर्मचारी उसे 10 या 15 दिन की दवा लेने के लिए मजबूर करते हैं। यदि मरीज की आर्थिक स्थिति अधिक मात्रा में दवा खरीदने की अनुमति नहीं देती, तो उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है। यही नहीं, कुछ मामलों में दर्द, बीपी, और शुगर जैसी जरूरी दवाएं भी “कटिंग” यानी कम मात्रा में देने से इनकार कर दिया जाता है।

रेडक्रॉस सदस्य सौरभ सक्सेना ने इस स्थिति का स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि ऊपर से आदेश है कि दवा टुकड़ों में न दी जाए, क्योंकि इससे बचे हुए पत्ते एक्सपायर हो जाते हैं और नुकसान होता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मरीज की आवश्यकता से अधिक दवा देना उचित है? क्या यह सही है कि स्टॉक की चिंता में मरीज को इलाज से वंचित कर दिया जाए?

रेडक्रॉस के अपने मापदंड हैं जिनमें समाजसेवा, सुलभ उपचार, और मानवीय मूल्यों की रक्षा करना प्रमुख है। लेकिन इन घटनाओं में यह साफ झलकता है कि वर्तमान व्यवस्था मरीजों के हितों के खिलाफ जा रही है। मरीजों को सुविधा देना, उनकी जरूरतों के अनुसार दवाएं उपलब्ध कराना और कोई भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ न डालना, यह रेडक्रॉस के मूलभूत उसूल हैं।

वहीं सिम्स जैसे संस्थान में आने वाले अधिकतर मरीज गरीब या मध्यम वर्ग के होते हैं जो पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं की लागत से परेशान होते हैं। उन्हें जबरन अधिक दवा देने से उनका आर्थिक बोझ बढ़ता है, साथ ही अनावश्यक दवा घरों में पड़ी रह जाती है जो बाद में व्यर्थ हो जाती है। यह न सिर्फ संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि मरीजों के अधिकारों का भी उल्लंघन है।

सरकार और रेडक्रॉस समिति को इस विषय पर तत्काल संज्ञान लेने की आवश्यकता है। स्टोर में पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, मरीजों की आवश्यकता के अनुरूप दवा उपलब्ध कराई जाए, और यदि एक्सपायरी का डर है तो इसके लिए लॉजिस्टिक व्यवस्था को सुधारें, न कि मरीजों पर उसका भार डालें।

रेडक्रॉस जैसी संस्था से जनता को उम्मीद होती है कि वह मानवीय संवेदनाओं को प्राथमिकता देगी। लेकिन यदि मरीजों को शर्मिंदा होकर लौटना पड़े, तो यह व्यवस्था की विफलता ही कही जाएगी।

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