बंद घोषित रेत घाटों पर खुलेआम खनन…..प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल…..

बिलासपुर– जिले में अवैध रेत खनन एक गंभीर मुद्दा के साथ अवैध रूप से कमाई का जरिया भी बनता जा रहा है।इस अवैध कमाई पर लगाम लगाने में प्रशासन पूरी तरह से फेल होता हुआ नजर आ रहा है।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय रेत के अवैध कारोबार को मुद्दा बनाकर लोगों के बीच में जाने वाली भारतीय जनता पार्टी मुखर होकर इसका विरोध करते रही।वही आज प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाले डेढ़ वर्ष से अधिक समय होने का आ रहा भारतीय जनता पार्टी को इसके बाद भी आज पर्यंत तक रेत का अवैध कारोबार जमकर फल फूल रहा है। प्रशासन द्वारा बंद घोषित किए गए रेत घाटों पर दिन-रात ट्रैक्टरों की आवाजाही जारी है, जिससे न केवल पर्यावरणीय संकट गहरा रहा है।बल्कि प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल उठने लगे हैं।आपको बताते चले कि शहर से सटे वार्ड क्रमांक 13 मंगला क्षेत्र में स्थिति चिंताजनक है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि यहाँ रेत लदे ट्रैक्टरों की आवाजाही अब आम बात हो गई है। प्रतिबंधित घाटों पर खनन गतिविधियाँ धड़ल्ले से चल रही हैं, जबकि प्रशासन ने इन घाटों को पहले ही अवैध घोषित कर रखा है।

स्थानीय पार्षद द्वारा कई बार शिकायत किए जाने के बावजूद, अभी तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है। मंगला से धुरीपारा तक का इलाका रिहायशी क्षेत्र है, इसके बावजूद यहां खनन कार्यों का बेरोक-टोक संचालन चिंताजनक है।खनिज विभाग का कहना है कि अवैध खनन की शिकायत मिलते ही कार्रवाई की जाती है। विभाग द्वारा एक टास्क फोर्स भी 26 तारीख को गठित की गई है, जिसमें राजस्व, पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारी शामिल हैं। यह टीम नियमित निरीक्षण कर रही है।हालांकि, जमीनी हालात इस दावे को झूठा साबित करते नजर आ रहे हैं। अब तक ना तो कोई ट्रैक्टर जब्त किया गया है और ना ही किसी रेत माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है। इससे यह संदेह गहराता जा रहा है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों और खनन माफियाओं के बीच कोई सांठगांठ है?स्थानीय लोगों की मानें तो यदि यह स्थिति यूँ ही बनी रही, तो मंगला जैसे अन्य रिहायशी इलाके भी रेत माफियाओं के नियंत्रण में आ सकते हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घाटों को बंद घोषित कर दिया गया है, तो फिर खुलेआम खनन किसके संरक्षण में हो रहा है?यह मुद्दा न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और कानून व्यवस्था की दृष्टि से भी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।

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