संवाद से समाधान के स्लोगन के साथ प्रदेश सरकार का सुशासन तिहार……? अतिक्रमण के सदमे में मासूम की मौत मचा बवाल…..अतिक्रमण कार्रवाई के दौरान कैंसर पीड़ित बच्चे की मौत…..परिजनों और स्थानीय लोगों में आक्रोश….न्याय की आस में मासूम का शव को लेकर पहुंचे कलेक्ट्रेट…..

बिलासपुर–सरकंडा क्षेत्र के लिंगियाडीह में नगर निगम द्वारा की जा रही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान एक दर्दनाक घटना सामने आई है। इस घटना के सामने आने के बाद पर जनाक्रोश के साथ की गई कार्रवाई का काफी विरोध आम जनता द्वारा दर्ज कराया जा रहा है।आपको बताते चले कि कार्रवाई के दौरान एक कैंसर पीड़ित बच्चे की मौत हो गई, जिससे इलाके में शोक और आक्रोश का माहौल व्याप्त हो गया है। परिजनों का आरोप है कि नगर निगम ने बिना पर्याप्त नोटिस और चेतावनी के उनके मकान का करीब 200 फीट हिस्सा जबरन तोड़ दिया।जबकि अन्य मकानों में सिर्फ 70 फीट तोड़फोड़ की गई। उनका कहना है कि यह कार्रवाई किसी रसूखदार को रास्ता देने के उद्देश्य से की गई थी।

वार्ड क्रमांक 52 के पार्षद दिलीप पाटिल ने इस कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब केवल 70 फीट तक तोड़ने का आदेश था, तो गरीबों के आशियाने को पूरी तरह क्यों ध्वस्त किया गया? उन्होंने आरोप लगाया कि निगम की कार्रवाई एकतरफा है और इसका उद्देश्य भाजपा नेताओं और प्रभावशाली लोगों को लाभ पहुंचाना है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि उनका मकान वास्तव में अतिक्रमण की श्रेणी में आता था, तो चुनाव के समय नेताओं ने उनसे वोट क्यों मांगे थे। उन्होंने कहा, “अगर हमारे घर अवैध हैं, तो फिर चुनाव के वक्त हमारे दरवाजे पर क्यों आए थे हाथ जोड़ने?परिजनों ने निगम अधिकारियों, महापौर, विधायक, सांसद और कलेक्टर पर सीधे तौर पर जिम्मेदारी तय करते हुए आरोप लगाया कि उनकी लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण इस दर्दनाक घटना को जन्म मिला है।मकान ढहने से दुखी परिवार और मोहल्ले के लोग मृतक बच्चे के शव को लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंच गए और वहां न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शन शुरू कर दिया। एक घंटे से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भी कोई प्रशासनिक अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा, जिससे लोगों में और अधिक नाराजगी देखने को मिली। इस मामले ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या अतिक्रमण विरोधी अभियान सभी के लिए समान रूप से लागू होता है, या फिर यह महज कमजोर और गरीब तबके को निशाना बनाने का जरिया बन गया है?अधूरी कार्रवाई से बना अपराधियों का गढ़……चांटीडीह में नगर निगम की बुलडोज़र कार्रवाई को एक साल से ज्यादा हो चुका है, लेकिन आज तक वहाँ विकास के नाम पर एक ईंट तक नहीं रखी गई। निगम की इस कार्यवाही के पीछे जो विकास का सपना दिखाया गया था। वह अब एक खंडहर बन चुका है — जहाँ शाम होते ही नशेड़ियों का जमावड़ा और अवैध गतिविधियाँ पनप रही हैं। प्रशासन भी अपनी आंखें मूंदे बैठा हुआ न कोई निगरानी, न कोई ठोस कार्रवाई के लिए पहल।इसी बीच निगम की बुलडोज़र कार्रवाई लगातार जारी है…..मगर टारगेट सिर्फ गरीब, छोटे दुकानदार और बस्ती के लोग हैं। जो लोग दिन-रात मेहनत करके अपना छोटा सा आशियाना बनाते हैं, निगम उनके घर और दुकानें तो तोड़ देती है। लेकिन जब बात रसूखदारों की आती है, तो प्रशासन के तेवर नरम हो जाते हैं। हाल ही में ज्वाली पुल में तीन मंज़िला अवैध दुकान पर कार्रवाई होने वाली थी, लेकिन महापौर के इशारे पर वह कार्रवाई रोक दी गई। क्या यही है कानून का राज?नगर निगम के इस पक्षपातपूर्ण रवैये से आम लोगों में आक्रोश है। सवाल यह है कि विकास के नाम पर सिर्फ गरीबों को उजाड़ना कब तक जारी रहेगा? क्यों बुलडोज़र सिर्फ उन पर चलता है जिनकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं?

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