पशु तस्करी और श्रमिक का पलायन मस्तुरी के लिए स्थाई समस्या.. जिनपर है रोकने की जिम्मेदारी वहीं आंख बंद कर हैं बैठे..
मस्तुरी पशु तस्करी का इंटर डिस्ट्रिक्ट सेंटर बन गया हैै.. गौ-सेवा कभी-कभी इस धंधे के खिलाफ हल्ला करते है और फिर उस मामले को छेड़ देते है.. रही बात पुलिस की तो उसकी प्राथमिकता में पशु तस्करी को रोकना कभी भी शामिल नही है.. बताने वाले तो यह भी दावा करते है की मस्तुरी में पशु तस्करी में मीडिया के हाथ भी गंदे है.. और इस व्यक्ति का एक रिश्तेदार मस्तुरी थाने में ही पदस्थ है.. इसी तरह मस्तुरी से श्रमिक पलायन अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से जारी है.. किन्तु इस बार लाॅकडाउन और फिर अनलाॅक ने इसे नए सिरे से परिभाषित किया.. क्षेत्र में श्रमिकों को बाहरी प्रदेशों में ले जाने वाले को सरदार कहा जाता है.. श्रमिक विभाग के पास पंजीयन कराने वाले एक दर्जन सरदार है और क्षेत्र में बिना पंजीयन कराएं श्रमिकों को बाहर ले जाने वाले सरदारों की संख्या 70 है..
पहले श्रमिकों का पूर्व बुकिंग हो जाता है, और सरदार उन्हें अग्रिम नगद देता है.. पता चलता है कि.. एक-एक सरदार के पास लाखों रुपये नगद पड़ा रहता है, श्रमिक को जब कभी बुकिंग का अग्रिम मिलता है तभी वह उधार और ब्याज की राशि अदा करता है.. श्रमिक का पलायन अब स्पेशल बस से होने लगा है और इन बसों को किसी भी स्थान पर चैकिंग के बिना ही निकाल देने का भुगतान पूर्व में ही सरदार संबंधित खाकी को कर देता है.. एक पशु तस्करी का ट्रक तस्कर को एक लाख रुपये तक का मुनाफा देता है और वहीं श्रमिको से भरी हुई स लाखों की होती है, खाकी को दोनो से कमाई है..