Emergency of 1975 : लोकतंत्र में सबसे बड़ा अलोकतांत्रिक फैसला
नई दिल्ली / 25 जून की आधी रात देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश पर सबसे बड़ा अलोकतांत्रिक फैसला थोप दिया गया। लोगों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए। विपक्ष के नेताओं को रातोंरात गिरफ्तार कर जेल में डाला गया। मीडिया पर सेंसरशिप लागू हुई। वह कोई भी जो सरकार का विरोध करता था या जिससे विरोध की आशंका थी, सरकार उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल देती थी। सरकार अपनी सत्ता एवं ताकत का कैसे दुरुपयोग कैसे कर सकती है आपातकाल का दौर इसका जीता जागता उदाहरण था।
‘अघोषित सरकार’ चला रहे थे संजय गांधी
आपातकाल के दौर में लाखों लोग गिरफ्तार हुए। जेल और अन्य जगहों पर मौतें हुईं जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी उस समय अपनी ‘अघोषित सरकार’ चला रहे थे। आपातकाल के 18 महीने बाद मार्च 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को आपातकाल की कीमत चुकानी पड़ी। लोकसभा चुनाव में जनता ने इंदिरा गांधी को बैलेट के जरिए जवाब दिया। इस चुनाव में कांग्रेस महज 154 सीटों पर सिमट गई। जबकि जनता पार्टी को 295 सीटों जीत मिली। समाचार पत्रों में की सामग्री छपने से पहले सरकार स्क्रीनिंग करती थी। सरकार ने संविधान में 42वां संशोधन किया। इसमें व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
‘आपातकाल’ के पीछे इलाहाबाद HC का फैसला
दरअसल, हाई कोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने 1971 के इंदिरा गांधी के चुनाव को अयोग्य करार दे दिया। साथ ही उन्हें पीएम पद से हटने और अगले छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इस फैसले के खिलाफ इंदिरा गांधी सुप्रीम कोर्ट पहुंची और हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें स्टे मिल गया। कोर्ट ने कहा कि इंदिरा गांधी सांसद रह सकती हैं लेकिन वह लोकसभा की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सकतीं। हालांकि, कोर्ट के निर्देश के बावजूद इंदिरा गांधी ने पीएम का पद नहीं छोड़ा और वह इस पद पर बने रहने के लिए आपातकाल लागू करने का फैसला किया। इंदिरा गांधी का मानना था कि उनके सिवाय देश का नेतृत्व कोई और नहीं कर सकता।
1975 के समय कैसे थे देश के हालात
पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने और बांग्लादेश को आजाद कराने के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी लेकिन इस युद्ध ने देश की आर्थिक हालत बिगाड़ दी। बांग्लादेश से लाखों की संख्या में आए शरणार्थियों का बोझ भी अर्थव्यवस्था पर पड़ा। युद्ध के बाद अमेरिका ने भारत को दी जाने वाली मदद बंद कर दी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कई गुना बढ़ गए। इससे देश में महंगाई काफी बढ़ गई। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच मंहगाई और बेरोजगारी ने इंदिरा सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया।
जेपी आंदोलन से डरी इंदिरा सरकार
गुजरात में छात्रों के आंदोलन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से इंदिरा सरकार डर गई। जेपी का ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा देश में बदलाव का अलख जगाने लगा। जेपी आंदोलन को मिले जनसमर्थन से इंदिरा गांधी घबरा गईं। जेपी के नेतृत्व में देश भर में जगह-जगह सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए। आए दिन रेल-बैंक हड़ताल और बाजार बंद कर लोग सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे। जेपी के अंदर पूरे विपक्ष को संभावना दिखाई दी। विपक्ष अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर जेपी के साथ खड़ा हो गया। सत्ता पर अपनी पकड़ और प्रधानमंत्री पद की कुर्सी बचाए रखने की चाहत ने इंदिरा गांधी को देश पर आपातकाल लागू करने के लिए विवश कर दिया।