वनमंडलाधिकारी के नाक के नीचे निर्माणकार्यो में भर्राशाही, वन भूमि के पथरीले भूखंड के पत्थर को स्टॉप डेम में किया जा रहा है उपयोग

रितेश गुप्ता की रिपोर्ट

कोरबा/कटघोरा: भ्रष्टाचार की चर्चाओं से गले तक डूबा कटघोरा वनमंडल आखिरकार आज भी अपने भ्रष्ट कार्यशैली से बाज नही आ सका है।आखिर इस वनमंडल में ऐसे गर्हित कार्य कैसे हो रहे? जो वन अधिनियमों को भी ताक पर रख दिया गया है।

दरअसल वनपरिक्षेञ पसान में निर्माणाधीन स्टॉप डेम में जो गिट्टी प्रयुक्त की जा रही है उसे वनभूमि के पथरीले भूखंड से बड़े बड़े पत्थरो को एकत्र कर मजदूरों से फोड़वाकर इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि वन अधिनियम के अनुसार वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुल्लमखुल्ला उलंघन है। वर्ष 2017 -18 में कटघोरा वनमंडल के अंतर्गत जड़गा वनपरिक्षेञ में भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी इबादते लिखी जा चुकी हैं जो कि आज भी वनमंडल के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

लिहाजा कई निर्माणकार्यो का भुगतान आज भी लंबित है।तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल में जड़गा वनपरिक्षेञ में तथाकथित ठेकेदारों ने जमकर सुर्खियां बटोरी थी एवम निर्माणकार्यो में भर्राशाही करने कोई कसर नही छोड़ी थी, जिसका खामियाजा वन मंडल आज तक भुगत रहा है।

कटघोरा वनमंडल में केवल जड़गा ही एकमात्र भ्रस्टाचार की गाथा लिखने वाला रेंज नही है बल्कि प्रायः प्रायः सभी रेन्जो मे ऐसे ही हालात बने हुई है।अगर बात करें कटघोरा वनमंडल के निहित वनपरिक्षेञ पसान की तो यहाँ ग्राम कर्री के आश्रित गाँव तुलबुल में निर्माणाधीन स्टॉप डेम के निर्माण में शासन प्रसाशन के नियम कायदों को सूली पर टांग भ्रस्टाचार की मिसाल खड़ी कर दी गई है।यहाँ तात्कालीन रेंजर ने अपने चहेते ठेकेदार को स्टॉप डेम बनाने की जिम्मेदारी सोंपी थी,काम मिलने पर ठेकेदार ने शासन के नियम कायदों को दरकिनार कर भ्रस्टाचार की गाथा लिख डाली।जब स्थानीय लोगो से चर्चा कर इस निर्माण कार्य के संबंध जाना गया तो बेहद चौकाने वाले तथ्य सामने आए, इन्होंने बताया कि स्टॉप डेम निर्माण कार्य मे जो गिट्टी प्रयोग की जा रही है वह कँही से ट्रांसपोर्ट नही की जा रही बल्कि उसे वन भूमि के पथरीले भूखण्ड पर गिरे पड़े व खुदाई कर निकाले गए पत्थरो को मजदूरों के द्वारा हाथों से फोड़वाकर उपयोग में लिया जा रहा है और गिट्टी की साइज भी लगभग 60 से 70 mm है जिसे डेम निर्माण कार्य में लगाया जा रहा है।यहाँ यह बताना लाजमी होगा कि विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार वनभूमि से पत्थरो की खुदाई करना या वन छेत्रों में स्थाई कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिए केंद्रीय अनुमति आवश्यक है।बिना परमिट वनों से पत्थरो को फोड़वाकर स्टॉप डेम उपयोग हेतु लिया जाना वन अधिनियम 1980 का उलंघन हो सकता है।यहाँ तक कि इस निर्माणकार्य में प्रयुक्त होने वाली मिट्टियुक्त रेत भी उसी नाले से उपयोग में लाई जा रही है।वन संरक्षण अधिनियम 1980 व भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 33 तथा वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 का खुल्लमखुल्ला उलंघन किया जा रहाहै।अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर कटघोरा वनमंडल शासन के नियम कायदों को चूल्हे में डाल केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगा है।

मजे की बात यह है कि इस निर्माण कार्य को कोई ठेकेदार या एजेंसी नही कर रहा, बल्कि वनमंडल कार्यालय में वनमंडलाधिकारी के नाक तले डेलीविजेश के पद पर आसीन शुभम जायसवाल के द्वारा कराया जा रहा है इसकी पुष्टि बकायदा स्थानीय ग्रामीण ने की है जो कि इस डेम की देखरेख करता है। स्टॉप डेम में लगभग 20 से 25 मजदूर कार्य कर चुके हैं और मजदूरी भुगतान प्रतिदिन 200 रु के हिसाब से बकायदा नगद प्राप्त कर रहे है। वनमंडल की भ्रष्ट कार्यशैली से न केवल शासन के नियमो की धज्जियां उड़ रही है बल्कि उन निर्माण कार्यो की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में डांडिया कर रही है जो की निर्माण के बाद कुछ माह में ही तिनके की भांति ढह जाते हैं।एक ओर राज्य सरकार जनता के लिए नई नई योजनाएं विकसित करने में लगी है ताकि जनता तक सरकार की सभी योजनाएं आसानी से पहुँच सके और वे इनका लाभ सरलता से उठा सके।लेकिन भ्रस्ट नोकरशाही से सरकार की छवि धूमिल हो रही है।

बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब कटघोरा वनमंडल ऐसे घटिया व गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्यो की सुध लेगा? क्या कटघोरा वनमंडलाधिकारी को ऐसे घटिया निर्माणकार्यो की जानकारी नही होती है? खैर वजह जो भी हो, लेकिन पसान में बने स्टॉप डेम में हुए घोटालों पर विभाग किस तरह की जांच करेगा यह देखने वाली बात होगी।

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