न्यायधानी में कानून व्यवस्था हाशिए पर,कहीं जेल की गेट में तलवार लहरा रहे अपराधी तो कहीं दिन दहाड़े गोली चला रहे

बिलासपुर –छत्तीसगढ़ में कभी शांति के टापू के नाम से प्रसिद्ध बिलासपुर अब अपराध का अखाड़ा बनते नजर आ रहा है तो वही लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था और अपराधियों को राजनीतिक शह की वजह से बिलासपुर का नाम प्रदेश ही नहीं पूरे देश भर में बदनाम हो रहा है।

जिले की पुलिसिंग भी पूरे प्रदेश में अपने बदनाम करनामो और कार्यशैली को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई है। आज पुलिस महकमे में अधिकारियों के कार्यशैली और उनके फैसले पर भी सवाल उठ खड़े होते हैं, बीते कुछ समय में बिलासपुर पुलिस अपनी कार्यकुशलता से ज्यादा निर्भरता के आधार पर काम करती नजर आती है।

अगर वायरल वीडियो और मोबाइल लोकेशन जैसी सुविधा पुलिस को ना मिले तो शायद ही पुलिस किसी मामले में आरोपियों तक पहुंच पाने में कामयाब हो पाए।क्योंकि जहां पर या दोनों सुविधाएं फेल होती है वहां पर पुलिस की कार्यशैली भी शून्य नजर आती है।नशे से लेकर अवैध कारोबार के धंधे को राजनीतिक और पुलिसिया संरक्षण प्राप्त होने की चर्चा चौक चौराहों ठेले ठपरीयों में सुनने को मिल जाती है।

ऊपर से पुलिस अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बजाए पीड़ितों और आवेदकों की अलग-अलग सूची जारी करने में लग जाती है।बाहरहाल बिलासपुर में जिस तरह गोलीबारी की घटना देखने को मिली वह वाकई झकझोर देने वाली है।हिस्ट्रीशीटर संजू त्रिपाठी को बीच बाजार गोली मारकर आरोपी फरार हो गए और पुलिस थाना चंद मीटर दूर होने के बाद भी अब तक कोई सबूत एकत्रित नहीं कर पाए या सोचने वाली बात है।और तो और इस गोलीकांड में संजू त्रिपाठी की मौत के बाद जब मीडिया में कांग्रेस नेता की गोली मारकर हत्या की हेडिंग बनने लगी तो पुलिस ने अपने और से सफाई देते हुए उसके आपराधिक रिकार्ड सामने लाकर रख दिए।बिलासपुर पुलिस को खुद ही सोचना चाइए की इस तरह से मीडिया के सामने मृतक की आपराधिक सूची की लम्बी चौड़ी फेहरिस्त लाकर रखने से पुलिस के दामन साफ नही होंगे।और घटना में कथित कांग्रेस नेता हो या फिर हिस्ट्री सीटर आदतन बदमाश,और यदि ऐसा ही था तो फिर पुलिस क्या कर रही थी।ऐसे असमाजिक और गुंडा प्रवृति का आदतन बदमाश खुले और स्वच्छ समाज में कैसे रह रहा था।इन्ही सब बातो को यदि प्राथमिकता देने लगे तो पुलिस के ऊपर ही कई सवालिया निशान लगने लगेंगे।

वहीं दूसरी ओर अपराधियों को रखने वाली जगह केंद्रीय जेल जैसे संवेदनशील जगह पर कुछ युवक तलवार लहराकर वीडियो बना देते हैं, लेकिन पुलिस को वीडियो वायरल होने के बाद होश आता है वही जेल प्रबंधन भी जेल के मुख्य दरवाजे पर इस तरह के कृत्यों को मूकदर्शक बने आखिर किस लिए देख रहा था।

गंभीर मामलों की बात करें तो पुलिस गंभीर अपराधों के विषय में आज भी कई मौकों पर खाली हाथ नजर आती

तालापारा के अंतर्गत आने वाले समता कॉलोनी में हुए हत्याकांड की बात हो या फिर रतनपुर में वह ब्लाइंड मर्डर की पुलिस के होनहार और तेजतर्रार जवान भी आज तक अपराधियों तक पहुंचने में नाकाम नजर आए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि नाइट गस्ती के नाम पर ऑफिसों में पदस्थ बीमार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगा देने से शहर के अंदर अपराधिक गतिविधियों में कितनी कमी आएगी और राजनीतिक संरक्षण वाले हिस्ट्रीशीटरो को छूने से डरने वाली पुलिस आखिर कानून का डर अपराधियों के अंदर कैसे भर पाएगी क्योंकि थाने और उच्चाधिकारियों के ऑफिसों में पुलिसकर्मियों की शिकायतों का बड़ा गर्दा जमा हुआ है, फाइलों को निपटाने के बजाय होनहार थाना प्रभारियों को निपटा कर कई मामलों को अधूरा छोड़ने वाले पुलिस अधिकारियों की ज्यादा पूछ परख इन दिनों बिलासपुर में पुलिसिंग की परिभाषा बनी हुई है।

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